सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी ।
समनि सोक - संताप - पाप - रुज, सकल - सुमंगल - रासी ॥१॥
....
कहत पुरान रची केसव निज कर - करतूति कला - सी ।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी ॥९॥
काशी स्तुति (विनय पत्रिका )
प्रस्तुत है समन्त आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
445 वां सार -संक्षेप
समन्त =विश्वव्यापी
भक्ति ही मुक्ति का आधार है यह विचार और विश्वास यदि कुछ क्षणों के लिये भी हमारे मन में आ जाता है तो हमारे जीवन में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगता है
यह सृष्टि इच्छा का परिणाम है। मन इच्छाओं का उद्गम स्थल है। ब्रह्म के मन की इच्छा 'एकोऽहं बहुस्याम्' से ही इस जगत् का निर्माण हुआ है।
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।
स्थूल से सूक्ष्म तक की हमारी यात्रा बहुत अद्भुत है
सांसारिक प्रपंचों में,पढ़ाई नौकरी धन भोग रोग में उलझते हुए हम लोग जीवन व्यतीत करते रहते हैं इस उलझन से बचने के लिये हमें भक्ति का आश्रय लेना चाहिये
व्यक्ति का व्यक्ति से सम्बन्ध यदि भावात्मक रूप से संयुत है तो सशरीर न होने पर भी वह व्यक्ति सदा साथ रहता है जिस प्रकार भगवान राम हमारे साथ भावात्मक रूप से संयुत हैं
बालकांड अयोध्या कांड अरण्यकांड में पहले शिव की वन्दना है क्योंकि तुलसी शिवभक्त हैं और अरण्यकांड तक तुलसी कथा कह रहे हैं लेकिन किष्किन्धा कांड में पहले भगवान् राम की वन्दना है राम से भी पहले लक्ष्मण लेकिन राम और लक्ष्मण तो एक हैं इसलिये यह राम की वन्दना ही कही जायेगी यहां से शिव कथा कह रहे हैं
कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ
सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥
ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं
श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।
संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्॥2॥
मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खान अघ हानि कर।
जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥
शक्ति अर्जित कर बाली जैसा दंभी होना खतरनाक है यह रावणत्व तो अब सब ओर प्रसरित हो गया है इसलिये हमें अपने रामत्व को जगाना ही होगा
इसके अतिरिक्त
काशी जाने की योजना बनाने का आचार्य जी ने परामर्श दिया
आचार्य जी काशी कब गये थे भैया नीरज जी अरविन्द जी मनीष जी पङ्कज जी प्रदीप जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें