आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥
प्रस्तुत है शोभन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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446 वां सार -संक्षेप
शोभन =सदाचारी
प्रायः संसार में यही होता है कि श्रद्धा स्वार्थ से संयुत रहती है और इस कारण व्यक्ति व्याकुल रहता है
संसार जितना ज्यादा प्रविष्ट होगा त्रुटियां भय भ्रम उतने ही ज्यादा होंगे लेकिन सुधारों की भी गुंजाइश भी तब तक रहती है जब तक संसार हमारे साथ है संसार अच्छा बुरा दोनों है संसार है तो मनुष्य एक से बढ़कर एक अच्छे काम कर लेता है केवल अध्यात्म हो तो संभव नहीं
परमात्मा भी संसारी विकारी होने पर सृष्टि की रचना करता है इसलिये संसारी होने पर हमें व्याकुल नहीं होना चाहिये
अपने अन्दर की आंतरिक शक्ति जिसे ऊर्जा कहते हैं से व्यक्ति आनन्दित रहता है आंतरिक शक्ति के प्रकार भिन्न भिन्न हैं वह अनुसंधान में लगती है चिन्तन में,कृति में लगती है भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य लेकर चलती है
हमें सांसारिक सुविधाएं प्राप्त हों हमें सांसारिक संतुष्टि मिले यही गुरुत्व है यही ईश्वरत्व है
आइये चलते हैं किष्किन्धा कांड में
किष्किन्धा वर्तमान में तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के क्षेत्र में माना गया है। बहुत पहले विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था।
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥
शिव जी के स्वरूप, हनुमान जी सूर्यपुत्र सुग्रीव के सचिव हैं
ऋष्यमूक पर्वत तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥
बटु अर्थात् ब्राह्मण ब्रह्मचारी,अर्थात् जिस पर कोई भी अविश्वास नहीं कर सकता, का रूप धारण कर पता करें
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥
हनुमान जी की विशेषता यही है कि जिस रूप को धारण करते हैं वही भाव उनके अन्दर प्रवेश कर जाता है इसी कारण जीवन में वे कभी असफल निराश भयभीत न हुए
हनुमान जाग्रत देवता हैं परम पूज्य हैं
आचार्य जी ने भैया राव अभिषेक भैया पङ्कज समर्थ गुरुरामदास मालवीय जी का नाम क्यों लिया
पीपल पर जल चढ़ाने से संबन्धित क्या बात थी
आचार्य जी आज उन्नाव से संबोधन क्यों कर रहे थे आदि जानने के लिये सुनें