प्रस्तुत है शैलिक्यारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 447 वां
शैलिक्यः =पाखंडी
राम कथा के माध्यम से घोर संकटकाल में बुझती ज्योति में घी डालने का काम किया तुलसीदास जी ने
उन्होंने सोये हुए हिन्दू समाज को उत्साहित शक्तिसंपन्न कर दिया उसे पता चल गया कि उसमें कितनी हिम्मत है
और
ज्योति फिर से भभक उठी
मूर्खों लंपटों को तर्क की भाषा समझ में नहीं आती है वे शक्ति के प्रकटीकरण से भयभीत होते हैं
आचार्य जी का भी यही उद्देश्य है कि हम अपनी शक्ति पहचानें हथियार औजार रखें और कह सकें
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
जैसे राम ने कहा था
आचार्य जी ने बताया कि
माया लिप्त होने पर ज्ञान लुप्त हो जाता है माया को सत्य मानकर मनुष्य भ्रमित होकर घूमता रहता है व्याकुल रहता है व्यथित रहता है
आइये प्रवेश करते हैं किष्किंधा कांड में
भगवान् शिव कथा कह रहे हैं
सुग्रीव बहुत उद्विग्न हैं( इनकी उद्विग्नता का वाल्मीकि रामायण में बहुत सुन्दर वर्णन है)
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥
इसकी व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि विप्रत्व विनम्र भी होता है
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता ॥
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ॥5॥
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।
की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥
इहाँ हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही॥
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥2॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना।
*हनुमान जी की खोज समाप्त हुई उन्हें उनके प्रभु मिल गये*
*बहुत ही भावुक क्षण*...
सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥3॥