माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढै बन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखत नाहीं।
प्रस्तुत है शोचिस् -पथ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
449 वां सार -संक्षेप
शोचिस् =प्रकाश
एक निश्चित समय पर इस सदाचार वेला का यदि हम श्रवण करते हैं तो यह अधिक लाभकारी होगा हमारे कल्याणकामी आचार्य जी हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार चैतन्य उत्साह संकल्पशीलता देशभक्ति आदि भरने के लिये तत्पर रहते हैं
आजकल अपनेपन के अद्भुत भाव का अभाव हो गया है ढोंग ढपाल तो बहुत दिखता है अपने पर विश्वास करना हमें सीखना है और अपनों को भी उत्साहित करें कि वो स्वयं पर विश्वास करें
प्रेम -विवाह से द्वेष -विच्छेद एक ऐसा उदाहरण है जो इंगित करता है कि वहां अपने पर विश्वास का अभाव था
राम कथा इस संकट के निवारण की अद्भुत संजीविनी बूटी है
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥
रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥
संशय तो गायब हो ही जायेंगे बस रामकथा में डूब जाने भर की देर है
आइये पुनः प्रवेश करते हैं किष्किंधा कांड में जिसमें अब हम हनुमानाश्रित होकर हनुमान जी के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं हनुमान जी सशरीर आज भी इस कलयुग में विद्यमान है पूजापाठ से दूर रहने वाले परिपूर्णानन्द जी वर्मा ने गीताप्रेस के हनुमान अंक में इसी से संबन्धित एक लेख लिखा है
अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥
तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥3॥
ऐसा कहकर पवनपुत्र
प्रभु के पैरों पर गिर पड़े, उन्होंने अपना वास्तविक शरीर प्रकट कर दिया। तब श्री राम जी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और अश्रुओं से सींचकर शीतल किया अश्रुपात बहुत प्रभावशाली होता है
समाजसुधारक रामानंद जो कबीर के गुरु थे उनसे संबन्धित एक बहुत ही मार्मिक प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया
सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥4॥
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥
सेवक स्वामी से संबन्धित अद्भुत पंक्तियां
सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ।
तुलसी प्रीति कि रीति सुनि सुकबि सराहहिं सोइ॥
देखि पवनसुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला॥
नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई॥1॥
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे॥
सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि॥2॥
इसके अतिरिक्त कौन सा बच्चा बिलबिला उठा जानने के लिये सुनें
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