सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।
ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥
हमें इसी रामत्व को धारण करने की आवश्यकता है अत्यन्त आवेशित भगवान् राम कहते हैं
हे सुग्रीव! सुनो, मैं एक ही बाण से बाली, जिसमें रावण के कारण रावणी वृत्ति आ गई थी, को मार डालूँगा। ब्रह्मा, रुद्र की शरण में जाने पर भी अब उसके प्राण नहीं बच पायेंगे
प्रस्तुत है ग्रन्थिमोचकारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23 अक्टूबर 2022 (नरक चौदस )
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
451 वां सार -संक्षेप
ग्रन्थिमोचकः =जेबकतरा
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।। नीतिशतक
लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और सुनना ये सभी प्रेम के लक्षण हैं
हमें प्रीति के ये लक्षण अपनाने चाहिये यह असली मित्रता है
भाव,विचार और क्रिया के आधार पर मनुष्य मनुष्यत्व को प्राप्त करता है गहराई में गये हुए भाव सुस्पष्ट विचार और सधी हुई क्रिया के द्वारा मनुष्य का पौरुष जागता है
वह उत्साहित होता है और दैन्य को दूर भगाता है अपनी व्यथाओं का शमन करने के लिये आइये एक बार फिर से किष्किन्धा कांड में प्रवेश करते हैं
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई॥
जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा॥3॥
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भेंटेउ अनुज सहित रघुनाथा॥
कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती॥4॥
तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।
पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ॥4॥
कीन्हि प्रीति कछु बीच न राखा। लछिमन राम चरित् सब भाखा ॥
कह सुग्रीव नयन भरि बारी। मिलिहि नाथ मिथिलेसकुमारी॥1॥
मंत्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा। बैठ रहेउँ मैं करत बिचारा॥
गगन पंथ देखी मैं जाता। परबस परी बहुत बिलपाता॥2॥
नल नील जामवन्त और हनुमान इन चार मन्त्रियों के साथ सुग्रीव बैठे विचार कर रहे थे कि बाली से राज्य कैसे प्राप्त करें बाली का क्रोध कैसे शान्त करें तब ही विलाप करती सीता जी आकाशमार्ग में सुग्रीव को दिखी थीं
राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी॥
मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा॥3॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
सब प्रकार करिहउँ सेवकाई। जेहि बिधि मिलिहि जानकी आई॥4॥
सखा बचन सुनि हरषे कृपासिंधु बलसींव।
कारन कवन बसहु बन मोहि कहहु सुग्रीव॥5॥
मैं बिछुए पहचान लेता यह किसने कहा आदि जानने के लिये सुनें