हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
*राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम*॥ 1॥
प्रस्तुत है क्षपाट -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
452 वां सार -संक्षेप
क्षपाटः =राक्षस
भयद तूफान की आवाज बढ़ती जा रही है ,
बची कुछ रोशनी अंधियार बीच समा रही है ,
कई कमजोर दिल धड़कन समेटे रो रहे हैं ,
विवश मजबूर से वे जिंदगी को ढो रहे हैं ,
मगर हम हैं कि हिम्मत हौसले से आ डटे हैं ,
न किंचित भी डिगे हैं या कि तिल भर भी हटे हैं ,
हमारे पूर्वजों ने यही हमको है सिखाया ,
कि साधन शक्ति का आगार है यह मनुज-काया ,
सदा उत्साहपूर्वक विजय पथ को नापना है ,
कठिन कितनी डगर है हमें यह भी मापना है ।।
किसी भय से नहीं भयभीत होते हम कभी भी ,
विगत में भी दबे हैं और न दबते हैं अभी भी ,
हमारे पूर्वजों ने युद्ध भी हंसकर लड़ा है ,
हमारा शौर्य सीना तान कर हरदम अड़ा है ,
कि हम हैं जो समर में भी उतरकर ज्ञान देते
पराजित शत्रु के भी आत्म को सम्मान देते
कभी हमने किसी को भी पराया ही न माना
सदा विश्वात्म को निज अनुभवों में आत्म जाना
(ओम शङ्कर 24-09-2021)
आचार्य जी के इन भावों की हमें उपेक्षा नहीं करनी चाहिये अपितु इन्हें ग्रहण करना चाहिये यही रामत्व है और आज तो दीपावली है इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है रामत्व को अपने जीवन में धारण करने का
जो पौरुष पराक्रम का विशाल भण्डार होते हैं वे दुःख को ढोते नहीं हैं अपितु दुःखानुभूति करके समय पर शक्ति बुद्धि पराक्रम प्रकट करते हैं यही रामत्व है
संसार के संबन्धों को वास्तव में पूर्णरूपेण सुस्पष्ट रूप से परिभाषित करने वाले किष्किन्धा कांड में आइये प्रवेश करते हैं
सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।
ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥
जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दु:ख रज मेरु समाना॥1॥
जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई॥
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा॥2॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥
सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें॥5॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥
दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥
देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥
बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भर्तृहरि रामकृष्ण परमहंस मैथिलीशरण गुप्त सुदामा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें