25.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम



प्रस्तुत है कौणप -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  453 वां सार -संक्षेप

कौणपः =राक्षस


हमारी ज्ञान -परम्परा को नष्ट करने के लिये अनगिनत उत्पात हुए इसे संसार की सृष्टि के उतार चढ़ाव का दोष कह सकते हैं लेकिन हमें इस बात पर निश्चेष्ट होकर नहीं बैठना है 

इस समय एक  अत्यन्त विकट समस्या उत्पन्न हो गई है कि हमें अपने पूर्वजों के, हमारी समस्याओं का निर्मूलन करने वाले अनुसंधान, प्रदेय आदि पर विश्वास नहीं होता


और यदि हम विश्वास की एक झलक मात्र भी पा लें तो संसार -सागर को आसानी से तैर कर पार कर सकते हैं


भगवान् राम के जीवन में निश्चेष्टता कभी नहीं रही

राम कभी निराश नहीं हुए उन्होंने 

कभी भी आत्मविश्वास खोया नहीं

उनका विलाप भी उनके नियन्त्रण में ही रहा


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।

ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥


यही रामत्व है

मनुष्य समस्याओं में उलझता है उनसे व्याकुल होता है लेकिन व्याकुलता दूर होते ही पराक्रम फिर से जाग्रत होना चाहिये

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपने जीवन को साधें मन को बांधें मूलतत्त्व को नित्य प्रातःकाल पहचानने का प्रयास करें


कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥

दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥

किष्किन्धा कांड में हम प्रवेश कर चुके हैं अब आगे



देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥

बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥


उपजा ग्यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयउ अलोला॥

सुख संपति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई॥8॥


ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥

सत्रु मित्र सुख, दु:ख जग माहीं। मायाकृत परमारथ नाहीं॥9॥

समय पर सुग्रीव का ज्ञान खुल गया


अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥

सुनि बिराग संजुत कपि बानी। बोले बिहँसि रामु धनुपानी॥11॥


जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई॥

नट मरकट इव सबहि नचावत। रामु खगेस बेद अस गावत॥12॥


चौपाई

लै सुग्रीव संग रघुनाथा। चले चाप सायक गहि हाथा॥

तब रघुपति सुग्रीव पठावा। गर्जेसि जाइ निकट बल पावा॥13॥


सुनत बालि क्रोधातुर धावा। गहि कर चरन नारि समुझावा॥

सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु तेज बल सींवा॥14॥


कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा॥


 दशरथ जी के पुत्र राम और लक्ष्मण संग्राम में काल को भी जीत सकते हैं


अस कहि चला महा अभिमानी। तृन समान सुग्रीवहि जानी॥

भिरे उभौ बाली अति तर्जा। मुठिका मारि महाधुनि गर्जा॥1॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हेडगेवार जी का नाम क्यों लिया मौत से कौन नहीं डरा जानने के लिये सुनें