26.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग सी 


 सुखद, सकल विभवों के आकर


 धरा-शिरोमणि मातृभूमि में


 धन्य हुए हो जीवन पाकर


 तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर


बड़े हुए लेकर जिसका रज


 तन रहते कैसे तज दोगे?


 उसको हे वीरों के वंशज!



बिद्याबान गुनी अति चातुर। रामकाज करीबे को आतुर।।



प्रस्तुत है वयुन -मार्ग आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  454 वां सार -संक्षेप

वयुनम् =ज्ञान


राम की कथा हमारी कथा के साथ मिलती जुलती चलती है

इसी कारण हम राष्ट्र -भक्त लोगों का, जिन्होंने उस भारतभूमि में जन्म लिया है जिसके लिये कहा जाता है


गायन्ति देवाः किल गीतकानि , धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे ।

स्वर्गापवर्गास्पद् मार्गभूते , भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वाद् ॥

, इसमें मन लगता है

हम लोगों की देशभक्ति सुख सुविधाओं  स्वार्थों के साथ तुलित होने लगती है तो हम मनुष्यत्व से दूर भागने लगते हैं मनुष्यत्व की राह छूटते ही समस्याओं के अम्बार आने लगते हैं 



राम कथा आज भी प्रासंगिक  है क्योंकि भगवान् राम के समय  में भी   समस्याएं थीं उनके समाधान थे आज भी हमारे सामने समस्याएं आती हैं तो उनके समाधान भी हमें खोजने होते हैं


बालि और सुग्रीव में कटुता कैसे आई इसके लिये आचार्य जी ने एक बहुत रोचक अन्तर्कथा सुनाई


अब आइये रामकथा में प्रवेश करते हैं

बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि।

मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि॥8॥


परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगे॥

स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ॥1॥


पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा॥

हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा॥2॥

पहले तो बालि तपस्वी था ही

वह समझ गया कि ये तो परमात्मा हैं


धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥

मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥3॥


अब यहां भगवान् राम का उत्तर देखिये यह है रामत्व



अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई॥4॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें