प्रस्तुत है ज्ञातृत्व - सागर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 3अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/66
ज्ञातृत्व =ज्ञान
माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।
बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥
रामकथा के माध्यम से अपनी व्यथाएं शमित करें
अपने को दीन हीन बेचारा न समझें संसार में संयोग एक अदृश्य शक्ति का लीला क्रम है इस दिव्यता का अनुभव करते हुए संसार सागर में उलझें नहीं देखा जाये तो हम सब अवतार हैं इसका अनुभव करने के लिये आवश्यकता है आत्मबोध की
अपने पास बैठने का प्रयास करें यह अनुभव करें कि मैं केवल संसार नहीं हूं कुछ और भी हूं इस आनन्द का अनुभव करें
लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद।
जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद॥ 23॥
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला॥
तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा॥1॥
पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली सीता जी से भगवान् राम कह रहे हैं कि मैं अब कुछ मनोहर मनुष्य लीला करूँगा
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तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥
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, इसलिए मेरे द्वारा राक्षसों के विनाश तक तुम अग्नि में निवास करो
अर्थात् अपने अन्दर के अग्नि तत्व को अन्य तत्वों आकाश पृथ्वी जल वायु की अपेक्षा प्रबल करने का कार्य
इस पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है।
जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी॥
निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रूप सुबिनीता॥2॥
लछिमनहूँ यह मरमु न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना॥
दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा॥3॥
(यह दशानन रावण षड्विकारों से ग्रस्त है
उसमें से एक काम विकार के कारण मां सीता पर वह मुग्ध हो गया था )
नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई॥
भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी॥4॥
नीच व्यक्ति की नम्रता भी अत्यन्त दुःखदायी है
जैसे अंकुश, धनुष, साँप और बिल्ली का झुकना
दुष्ट की मीठी वाणी भी भय देने वाली होती है
मारीच तो भगवान् राम को समझ चुका था लेकिन रावण को समझ में नहीं आया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने FLAME TEST, LICENCE, शिक्षावल्ली का उल्लेख किस कारण किया भैया पङ्कज का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें