4.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 4 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥5॥


बुरे रास्ते पर पैर रखते ही शरीर में तेज, बुद्धि,शक्ति सामर्थ्य बिल्कुल भी  शेष नहीं बचता

और जिसके अन्तरचक्षु बन्द हैं वह गलत काम कर ही जाता है हाल की घटना देखें तो वनन्त्रा रिजार्ट कांड है




मनीष कृष्णा जी आपके लिये प्रश्न है

खगेस का क्या अर्थ है?



प्रस्तुत है शारद आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 4अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/67


शारद = निपुण


तन मन बुद्धि का बहुत अच्छा सामञ्जस्य हो तो विचार पल्लवित होने लगते हैं और उन विचारों के पल्लवन के साथ जब वाणी का व्यवहार दिखता है तो वह प्रभावशाली होती है



आइये अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं आज के समय में व्यावहारिक परिस्थितियां उत्पन्न करने की प्रेरणा देती है रामकथा


प्रगटत दुरत करत छल भूरी। एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी॥

तब तकि राम कठिन सर मारा। धरनि परेउ करि घोर पुकारा॥7॥


कभी प्रकट होता हुआ और कभी छिपता हुआ  बहुत प्रकार के छल करता हुआ मारीच भगवान् राम  को दूर ले गया। तब रामजी ने निशाना लगाकर कठोर बाण मारा और वह चिल्लाता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा


भगवान् तो उसे पहले ही मार सकते थे दूर जाना ही नहीं पड़ता लेकिन यही लीला है



लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा। पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा॥

प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा। सुमिरेसि रामु समेत सनेहा॥8॥


पहले लक्ष्मण का नाम लिया ताकि सीता को भ्रम हो जाये कि वे संकट में हैं फिर भगवान् राम का नाम लिया प्राण त्यागते समय उसने अपना राक्षसी रूप प्रकट किया और प्रेम के साथ भगवान् राम का स्मरण किया।


सर्वज्ञ राम ने उसके  प्रेम को जानकर उसे वह गति  दी जो मुनियों को भी दुर्लभ है।



खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। सोह चाप कर कटि तूनीरा॥

आरत गिरा सुनी जब सीता। कह लछिमन सन परम सभीता॥1॥


मारीच को मारकर श्री राम तुरंत लौट पड़े। हाथ में धनुष और कमर में तरकस शोभायमान हैं इधर जब सीताजी ने दुःखभरी वाणी  सुनी तो वे बहुत ही भयभीत हो गईं


सांसारिक सीता जी को भय होगा जब कि साक्षात् सीता तो अग्नि में प्रवेश कर गई हैं

*प्रश्नोत्तर वेला की योजना बनाकर इसे विस्तार दिया जा सकता है*



जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता॥

भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई॥2॥



मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला॥

बन दिसि देव सौंपि सब काहू। चले जहाँ रावन ससि राहू॥3॥


लक्ष्मण को माया प्रभावित नहीं कर रही है जब कि सीता को कर रही है

लेकिन मर्मस्थल को चुभ जाने वाले सीता जी के वचनों से लक्ष्मण जी का मन डोल गया मति नहीं डोली



सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा॥

जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं॥4॥


सो दससीस स्वान की नाईं। इत उत चितइ चला भड़िहाईं॥

इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥5॥



क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ।

चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ॥28॥


बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा॥

सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी॥3॥


गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥

अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥4॥



जटायु ने सीताजी की दुःखभरी वाणी सुनते ही पहचान लिया कि ये रामजी की पत्नी हैं। उसने देखा कि नीच  इनको इस तरह लिए जा रहा है, जैसे कपिला गाय म्लेच्छ के हाथ आ गई हो



चर अचर जीव सब दुःखी हो गये


यदि जटायु ऐसा कर सकते हैं तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं



सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥

धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥5॥


ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिये आज के समय में तो इसकी बहुत आवश्यकता है