30.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।।

हनुमान जी को जैसे ही अपना उद्देश्य याद आता है उनमें अपार शक्ति आ जाती है इसी प्रकार हम भी अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर शक्ति संपन्न बनें 


प्रस्तुत है असुषिर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 अक्टूबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  458 वां सार -संक्षेप

असुषिर =जिसमें कपट न हो


मनुष्य पशु नहीं है पशु को प्रकृति नियन्त्रित करती है और मनुष्य आत्मनियन्त्रित होता है

यदि उसका आत्मनियन्त्रण खो जाता है तो दूसरे लोग उसको नियन्त्रित करते हैं

पाश्चात्य संस्कृति भोग पर आधारित है


हम अस्ताचल देशों को देखकर भ्रमित हो गये इसी भ्रम के कारण लोग हमारा उपयोग करने लगे


चैतन्य को गिरवी रखने पर हमारी दुर्दशा ज्यादा हुई हमें यही नहीं पता चला कि हमारा साहित्य (जो हमारा हित करे ) क्या है


पराक्रम से विमुखता ने भी हमें हानि पहुंचाई


आचार्य जी का यही प्रयास रहता है कि हमें विश्लेषणात्मक बुद्धि प्राप्त हो हमारा कर्म शैथिल्य भाव शैथिल्य समाप्त हो

राम का रामत्व देखिये जिसमें भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य है 


तो आइये रामचरित मानस के हृदय किष्किन्धा कांड में प्रवेश करें

राम का प्रेम आत्मीयता वाला शुद्ध मानवत्व प्रारम्भ होता है सीता भाव धन है आत्मशक्ति है इसलिये उनकी खोज आवश्यक है 


बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई।।

एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालहु जीत निमिष महुँ आनौं।।


कतहुँ रहउ जौं जीवति होई। तात जतन करि आनेउँ सोई।।

सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी।।

जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।।

जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा। ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा।।

जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी।।

लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना। धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना।।


दोहा/सोरठा

तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव।।

भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।।18।


हम संगठनकर्ता को कोई भी काम आवेश में आकर नहीं करना चाहिये 



सुग्रीव के सेवक रहे हनुमान जी अब राम भक्त होने जा रहे हैं भक्ति ऐसी कि उसकी दूसरी मिसाल ही इस संसार में न थी न है न होगी



इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा।।

निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा।।

सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना।।


वासनाएं ज्ञान को हर लेती हैं



अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा।।

कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोरें कर ता कर बध होई।।

तब हनुमंत बोलाए दूता। सब कर करि सनमान बहूता।।

भय अरु प्रीति नीति देखाई। चले सकल चरनन्हि सिर नाई।।

एहि अवसर लछिमन पुर आए। क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए।।



धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार।

ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार।।19।।



चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही।।

क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना।।

सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा।।

तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना।।

करि बिनती मंदिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए।।

तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कंठ लगावा।।

नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।।

सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा।।

पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई।।


दोहा/सोरठा

हरषि चले सुग्रीव तबt अंगदादि कपि साथ।

रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ।।20।।

सीता खोज का प्रसंग अद्भुत है हनुमान जी ने मुद्रिका मुंह में रख ली उस मुद्रिका में हनुमान जी को जीवनीशक्ति देने वाला रामात्व है


इसके अतिरिक्त आज सरौंहां में होने वाले चिकित्सा शिविर में आप सादर आमन्त्रित हैं