प्रस्तुत है अरण्येचरारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 5 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/68
अरण्येचर = जंगली
मनुष्य जीवन बहुत अद्भुत है अद्वितीय भी है यह कर्मयोनि देवताओं की भोगयोनि से बहुत आगे है इस जीवन को हम व्यर्थ न जाने दें सकारात्मक सोच के साथ हम सन्मार्ग की ओर चलने का अभ्यास करें
आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमें इन वेलाओं से शक्ति बुद्धि समय पर सर्वथा उचित निर्णय लेने की क्षमता आदि प्राप्त हो हम जल में कमल की तरह रहते हुए संसार में सारे कार्य करें लेकिन उनमें लिप्त न हों
पूर्णावतार धर्मज्ञ सर्वज्ञ शास्त्रज्ञ भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
आज विजयादशमी के पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
आजकल हम लोग रामकथा के अरण्यकांड में प्रविष्ट हैं इस कांड में घटनाओं का वैविध्य देखने को मिलता है परिस्थितियां क्षण क्षण में परिवर्तित होती रहती हैं
बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा॥
सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी॥3॥
भगवान् को मेरी यह विपत्ति कौन सुनायेगा यज्ञ के अन्न (पुरोडाशः ) को गधा ( रासभः )खाना चाहता है।
सीतामइया का भारी विलाप सुनकर जड़-चेतन सारे जीव दुःखी हो गए
गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥
अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥4॥
जटायु में बल संयम विचार शक्ति समर्पण जूझ मरने का जज्बा था इसी कारण वो आश्वासन दे रहे हैं
सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥
धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥5॥
रे रे दुष्ट ठाढ़ किन हो ही। निर्भय चलेसि न जानेहि मोही॥
आवत देखि कृतांत समाना। फिरि दसकंधर कर अनुमाना॥6॥
सुनत गीध क्रोधातुर धावा। कह सुनु रावन मोर सिखावा॥
तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू। नाहिं त अस होइहि बहुबाहू॥8॥
धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा॥
चोचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही॥10॥
यह वीर का भाव होता है
जेहि बिधि कपट कुरंग सँग धाइ चले श्रीराम।
सो छबि सीता राखि उर रटति रहति हरिनाम॥29 ख॥
ध्यान जब सिद्ध हो जाता है तो बहुत शक्ति देता है इसी ध्यानसिद्धि के आधार पर शक्ति बुद्धि संयम समर्पण की प्रतीक मां सीता लङ्का में बहुत दिन तक निवास करते हुए रावण का प्रतिकार करते हुए अपनी साधना को फलीभूत कर पाईं
कथा में आगे राम का विलाप है
हम भक्त हैं और राम भगवान् हैं इसी सत्य को स्वीकारते हुए कथा का आनन्द हम लोग लें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कवि चोंच का नाम क्यों लिया कौन किसका चेहरा धूमिल करता है आदि जानने के लिये सुनें