7.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 7 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।


प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।17.4।।




प्रस्तुत है ज्ञान -निश्रयणी आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 7 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/70

निश्रयणी =सीढ़ी


गीता के इस छन्द का अर्थ है 

सात्त्विक जन देवताओं का पूजन  अर्थात् सात्त्विक पूजन करते हैं,राजसी  यक्ष और राक्षसों को, तथा अन्य तामसी जन प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं।।


मनुष्य के अन्दर उठ रहे भाव  विचारों को पल्ल्वित करके व्यवहार रूप में  बहुत से सिद्धान्त प्रस्तुत कर देते हैं

सात्त्विक पुरुष कहते हैं ये सब ईश्वर करता है




हम अपने अन्दर के सात्त्विक तत्त्व को उचित खानपान, उचित आहार विहार उत्तम विचारों के माध्यम से विकसित करें जिसके लिये सद्सङ्गति स्वाध्याय ध्यान धारणा संयम निदिध्यासन आवश्यक है 

सभी कर्मशील व्यक्तियों के शरीर मन बुद्धि एकाकार होने के लिये उत्साहित होते रहते हैं और इन व्यक्तियों का   जीवन  यज्ञ नित्य चलता रहता है 



कल 10 से 14 नवंबर 2022 के मध्य मियागंज में होने वाले राजसूय यज्ञ का  भूमि पूजन संपन्न हुआ जिसमें कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इस यज्ञ के अध्यक्ष परम आदरणीय पूज्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी, भैया मुकेश जी,क्षेत्रीय विधायक श्री बंबा लाल जी, बांगरमऊ विधायक श्री कटियार जी,तहसील हसनगंज के एसडीएम साहब, मियागंज ब्लाक के बीडीओ साहब आदि ने भाग लेकर प्रसाद ग्रहण किया

आइये एक बार फिर से अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं


सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥


हे तात! सीता हरण की सूचना पिताजी को न दें । यदि मैं राम हूँ तो दशमुख परिवार सहित स्वर्ग में स्वयं ही कहेगा



गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा॥

स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी॥1॥


जय राम रूप अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही।

दससीस बाहु प्रचंड खंडन चंड सर मंडन मही॥

पाथोद गात सरोज मुख राजीव आयत लोचनं।

नित नौमि रामु कृपाल बाहु बिसाल भव भय मोचनं॥1॥


बलमप्रमेयमनादिमजमब्यक्तमेकमगोचरं।

गोबिंद गोपर द्वंद्वहर बिग्यानघन धरनीधरं॥

जे राम मंत्र जपंत संत अनंत जन मन रंजनं।

नित नौमि राम अकाम प्रिय कामादि खल दल गंजनं॥2॥



सुनहू उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी।

पुनि सीतहि खोजत द्वौ भाई। चले बिलोकत बन बहुताई॥2॥

संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन॥

आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता॥3॥



सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥

पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥1॥


शाप देता , मारता  और कटु वचन कहता  ब्राह्मण  पूजनीय है, संत ऐसा कहते हैं। शील और गुण से रहित भी ब्राह्मण पूजनीय है।  गुण गणों से युक्त और ज्ञान में निपुण  शूद्र पूजनीय नहीं है


ब्राह्मण का अर्थ है जो सतत ब्रह्म के चिन्तन में डूबा रहे संसार से उसे कोई मतलब न रहे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया निर्भय जी भैया आलोक जी ( सतना ), हिटलर का नाम क्यों लिया

बबूल के पास दिया कौन रखता था आदि जानने के लिये सुनें