*हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम*।
*राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम*॥ 1॥
राम काज करने में राष्ट्र कार्य करने में समाज सेवा करने में जो लोग संलग्न हैं वो विश्राम की बात सोचें भी नहीं अन्त तक इनमें लगे रहें
प्रस्तुत है इन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 1 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
460 वां सार -संक्षेप
इन =योग्य
अत्यन्त प्रेरक लाभकारी आनन्द देने वाले इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य ही है कि हम राष्ट्र भक्त बनें सतर्क दृष्टि के साथ सेवाभावी बनें स्वाध्यायी बनें
आइये राम कथा में प्रवेश करते हैं जो
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥
रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥
है
पञ्चम सोपान राम कथा का शीर्ष स्वरूप है क्योंकि यहां कथा में शिवत्व सशक्त रूप में पूरी तरह से सम्मिलित हो गया है राम और हनुमान
सुन्दर कांड का नाम सुन्दर क्यों?
यह प्रश्न है
लंका त्रिकूट पर बसी हुई थी। त्रिकूटाचल पर तीन पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत,जहां युद्ध हुआ था, दूसरा नील पर्वत जहां राक्षसों के महल थे और तीसरा सुंदर पर्वत जहां अशोक वाटिका थी।
एक किंवदंती के अनुसार हनुमान जी की माता उन्हें प्यार से “सुंदरा” कहकर पुकारती थीं इसीलिए इस भाग का नाम सुन्दरकाण्ड हो गया
हनुमान जी ने यहीं से अपना प्रभाव दिखाया है
इन प्रश्नों में न उलझकर भावमय होकर इसमें रमें इसका श्रवण करें तभी हमें शतगुणित आनन्द प्राप्त होगा
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदांतवेद्यं विभुम् ।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ॥ १ ॥
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा ।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ २ ॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ ३ ॥
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ॥ ५ ॥