2.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 2 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥




प्रस्तुत है उरुपराक्रम आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 2 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  461 वां सार -संक्षेप

उरुपराक्रम =अत्यधिक शक्तिशाली



हमारे ऋषियों ने विश्व की आयु मापी सत त्रेता द्वापर कलि नाम दे दिये महायुग कल्प मन्वन्तर (मनु +अन्तर =मनु की आयु )प्रलय आदि से परिचित कराया


वर्तमान मे  सातवां मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इससे पूर्व छह मन्वन्तर स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके हैं और आगे सावर्णि आदि हैं हमारा एक कर्तव्य यह भी है कि हम ऋषिऋण चुकायें

 आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग विस्तार से मानस पीयूष अध्यात्म रामायण आदि का अध्ययन करें और प्रश्नोत्तर भी करें




शक्ति बुद्धि सदाचारमय विचार संयम आत्मविश्वास उत्साह ग्रहण करने के लिये, परिस्थितियों से संघर्ष करने की क्षमता पाने के लिये आजकल हम लोग मनुष्य को मनुष्यत्व प्रदान करने वाले सदाचरिता के शाश्वत अद्भुत ग्रन्थ रामचरित मानस में, जिसे तुलसीदास जी ने बहुत अध्ययन करने के पश्चात् हम लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया,प्रविष्ट हैं जिसके मुख्य पात्र पूर्व में सुग्रीव के सेवक शिवावतार उरुपराक्रम हनुमान जी हैं  जिनसे प्रेरणा लेते हुए सर्वव्यापी दनुजों का समापन करने के लिये हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने ही होंगे

कल से हम लोग सुन्दरकांड में प्रविष्ट हैं 

सुन्दरकांड में हनुमान जी, जिन्हें देशभर में फैले असंगठित लोगों का प्रेममय संगठन करने वाले भगवान् राम पर पूर्ण विश्वास है,का ही सारा कार्यव्यवहार है अखण्ड विश्वास से ही आत्मशक्ति आती है 


जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥

सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥


तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥

कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ॥

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥


राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।

आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥2॥


निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥

जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥1॥


ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥

तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥3॥



जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥

मुठिका एक महा कपि हनी।

ऐसे हैं हनुमान जी किस समय कौन सा कार्य करना उनसे प्रेरणा ले सकते हैं हम लोग 


 रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥