कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥2॥
प्रस्तुत है रसज्ञ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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469 वां सार -संक्षेप
रसज्ञ =कवि
संसार में वैभव के प्रति अनुरक्ति स्वाभाविक तो है लेकिन अनिवार्य नहीं
जिन लोगों के लिये यह वैभव अनावश्यक है वो तत्त्वज्ञ हैं जैसे हनुमान जी
संसार, जो अनेक प्रपंचों से भरा है,में इस तत्त्व को धारण करना कठिन है इसलिये
सहजं कर्म कौन्तेय.....के अनुसार व्यावहारिक जीवन जीते हुए निन्दनीय कार्यों से बचते हुए सेवा की भावना रखें
सेवा किसी की भी हो सकती है दीन दुःखियों की माता पिता की सहयोगियों की शिक्षकों की क्योंकि अन्ततः इन सबकी सेवा उस स्रष्टा की सेवा है जिसकी सिसृक्षा के कारण ही यह सृष्टि है
यही बात गोस्वामी तुलसीदास जी के रचे ग्रंथों में परिलक्षित होती है
आइये चलते हैं सुन्दरकांड में
स्वर्णमयी लङ्का के दोषों को समाप्त करने का प्रयास हनुमान जी ने उसे भस्मीभूत करके प्रारम्भ कर दिया
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥26॥
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥1॥
तात सक्रसुत कथा सनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥3॥
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥
मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥
हनुमान जी ने कहा आपका नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आपका ध्यान ही किवाड़ है। आंखों को अपने चरणों में लगाए रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जाएँ तो किस रास्ते से?
इसके अतिरिक्त
मियागंज उन्नाव में आज से राजसूय यज्ञ का शुभारंभ होने जा रहा है जिसमें आज प्रातः 9:00 बजे से शुभ मंगल कलश यात्रा प्रारंभ होगी आप सभी सादर अमान्त्रित हैं