9.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 9 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है न्यासिन् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 9 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  468 वां सार -संक्षेप

न्यासिन् =संन्यासी



अत्यादित्य अद्भुत साहित्यावतार महात्मा योगी चिन्तक  विद्वान ज्ञानी विचारक गोस्वामी तुलसीदास कवितावली में अपने बारे में लिखते हैं


जोगु न बिरागु , जप, जाग ,तप, त्यागु ,

ब्रत, तीरथ न धर्म जानौं ,बेदबिधि किमि है।


    तुलसी-सो पोच न भयो है , नहि ह्वैहै कहूँ,

   सोचैं सब, याके अघ कैसे प्रभु छमिहैं।


मेरें तौ न डरू, रघुबीर! सुनौ , साँची कहौं ,

खल अनखैहैं तुम्हैं, सज्जन न गमिहैं।


    भले सुकृतीके संग मोहि तुलाँ तौलिए तौ,

    नामकेें प्रसाद भारू मेरी ओर नामिहैं।।


द्रोणाचार्य द्वारा पढ़ाये जाने के बाद शिष्यों में युधिष्ठिर 


सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजानन्तुं मा व्यवच्छेसीः ।...


याद नहीं कर पा रहे थे 

और कई दिन बाद सत्यं वद याद कर पाये क्योंकि उन्होंने उसे ढाला 

बोलना अलग बात है और जानना अलग बात है 

उपदेश शिक्षा बहिर्मुखी हो जाती है जो हम बोल रहे हैं वैसा करें भी तभी उसका महत्त्व है  आत्मबोध की ओर हमें ध्यान देना चाहिये हम सत्य बोलने के लिये दूसरे को उपदेश दे रहे हैं तो स्वयं भी सत्य बोलें 

तुलसी जी को भक्ति पर बहुत विश्वास था

बहुत ही अडिग विश्वास था 

उनको किसी की चिन्ता नहीं थी 


आचार्य जी ने अपनी एक कविता सुनाई

पक चुके कान सोने की गाथा सुन सुन कर....


जिसक आशय है हम जितना संसार से विरक्त रहेंगे उतना ही स्वर्ण से मुक्त रहेंगे


जैसे हनुमान जी महा विरागी हैं


रावनु सो राजरोगु बाढ़त बिराट-उर,

 दिनु-दिनु बिकल, सकल सुख राँक सो।


नाना उपचार करि हारे सुर, सिद्ध, मुनि,

 होत न बिसोक, औत पावै न मनाक सो।।


 रामकी रजाइतें रसाइनी समीरसूनु ,

 उतरि पयोधि पार सोधि सरवाक सो।।


 जातुधान पुटपाक लंक -जातरूप,

रतन जतन जारि कियो है मृगांक-सो।25।

रावण से सभी त्रस्त थे रावण का राजयोग बढ़ गया था स्वयं उसे भी चैन नहीं था तब हनुमान जी ने सोने की लंका को भस्मीभूत कर दिया





जारि-बारि, कै बिधूम, बारिधि बुताइ लूम,

 नाइ माथो पगनि, भो ठाढ़ो कर जोरि कै।


 मातु! कृपा कीजै, सहिजानि दीजै , सुनि सीय,

  दीन्ही है असीस चारू चूडामनि छोरि कै।।


कहा कहौं तात! देखे जात ज्यों बिहात दिन,

 बड़ी अवलंब ही , सो चले तुम्ह तोरि कै।।


तुलसी सनीर नैन , नेहसो सिथिल बैन,

 बिकल बिलोकि कपि कहत निहोरि कै।


दिवस छ-सात जात जानिबे न, मातु! धरू,

 धीर, अरि -अंतकी अवधि रहि थोरिकै।


बारिधि बँधाइ सेतु ऐहैं भानुकुलकेतु

सानुज कुसल कपिकटकु बटोरि कै