प्रस्तुत है तरीष आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
473 वां सार -संक्षेप
तरीष =सक्षम व्यक्ति
स्व सत् की ओर उन्मुख हो यह मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ प्राप्तव्य है यूं तो मन अत्यधिक स्वार्थी होता है अपने ही आनन्द में मग्न रहना चाहता है लेकिन संतवृत्ति वह है जो दूसरे के आनन्द में आनन्द ले
निर्मल चित्त वालों को ही अवतारत्व समझ में आता है
संसार में लिप्त होने पर मलिनता चढ़ जाती है
स्व को सत् की ओर उन्मुख करने के लिये आचार्य जी नित्य सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें उत्साहित करते हैं
आज कल हम लोग राम चरित मानस में प्रविष्ट हैं
विलक्षण कृति है राम चरित मानस
इसका एक एक शब्द विशिष्ट है इसमें वेद वेदांग पौराणिक कथानक औपनिषदिक तथ्य स्मृतियां और सबसे महत्त्वपूर्ण तन्त्रशास्त्रीय विधिविधान का समावेश है जिसके कारण ही यदि इसके एक कांड
सुंदरकांड का पाठ किया जाये तो उस भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती। जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो, तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।
आचार्य जी ने भी इसकी अनुभूति की है
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।37।।
हमें अपने अन्दर गुरुत्व खोजना होगा क्योंकि जब हम किसी अन्य को गुरु मानते हैं और उसमें दोष देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं
आत्मस्थ होने की चेष्टा करें
आत्मस्थ होने के लिये आइये चलते हैं मानस में
जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।।
दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।।
रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।।
कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।।
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।
तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।।
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।
राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।।
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।।
सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।।
जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।।
कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।।
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।।
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।।
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।
इसके अतिरिक्त पतावर क्या है?
आचार्य जी ने कमल टावरी जी की चर्चा क्यों की
जानने के लिये सुनें