काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।38।।
प्रस्तुत है धुरन्धर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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474 वां सार -संक्षेप
धुरन्धर =महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों से लदा हुआ
हमें सिर्फ धन के अर्जन में ही लिप्त नहीं रहना चाहिये धनार्जन से हटकर हमें चिन्तन यह करना चाहिये कि हमें मानव जीवन क्यों मिला है हमें अपने को जानने का भी प्रयास करना चाहिये
आत्मशोध आत्मबोध आत्म ज्ञान के पश्चात् आत्मभक्ति का प्रयास करें
चिन्तन एक गहन प्रक्रिया है और मनुष्य को मिली मूल्यवान उपलब्धि है चिन्तन में चिन्ता का कारण प्रविष्ट है
अगर मैं किसी वजह से परेशान हूं तो क्या उस परेशानी को मैं स्वयं सुलझा सकता हूं अपने के साथ दूसरे की भी सुलझा सकता हूं इन भावों का आना चिन्तन कहलाता है अपने अन्दर के विकारों पर ध्यान दें हमारी विद्वत्ता शील का त्याग न करे इस ओर ध्यान दें
हमारे अन्दर ये भाव आयें इसी के लिये हमारे हितैषी चिन्तक विचारक मानस -मर्मज्ञ आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि बालकांड में 23 वें दोहे से 25 वें दोहे तक पढ़ें जिसमें नाम जप का प्रभाव है उस समय निर्गुण का प्रभाव था
निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥ 23॥
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥
सहित दोष दु:ख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥
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ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥ 25॥
आइये प्रवेश करते हैं सुन्दरकांड में
रावण को मन्दोदरी की बातें अच्छी नहीं लगीं और वह चापलूसों के बीच आ गया
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।।
तब विचारक चिन्तक भक्त विभीषण का प्रवेश होता है
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।।
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।।
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।।
जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।।
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शंकराचार्य जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिये सुनें
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