16.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥

ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥



प्रस्तुत है विगतभी* आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  475 वां सार -संक्षेप

*निर्भय



इन सार्थक सदाचार संप्रेषणों  को हम केवल सुनें ही नहीं अपितु सुनने के साथ गुनें  मनन करें और कार्यान्वयन के लिये भी उद्यत हों क्यों कि हम लोगों में आचार्य जी समाज को संचेतना प्रदान करने की क्षमता देखते हैं

इस प्रेरक भावयज्ञ का नित्य अवगाहन करते हुए 

हम जिस क्षेत्र में हों उसमें निर्भय होकर योजनाएं बनायें

सकारात्मकता के साथ सोचें भविष्य उज्ज्वल है हम मानस के आधार पर अपने जीवन की रचना करें 


वयं राष्ट्रे जागृयाम, सर्वे भवन्तु सुखिनः आदि सूत्र सिद्धान्तों पर कार्यान्वयन होना ही चाहिये जब हनुमान जी को हम अपना इष्ट मानते हैं तो उन्हें नाराज क्यों करें



 गोस्वामी तुलसीदास ने सुन्दर कांड द्वारा संपूर्ण भारतवर्ष की भावना को आन्दोलित किया उसी सुन्दर कांड में आइये प्रवेश करते हैं



कुछ के चरित्र सांसारिकता के कारण भ्रामक लगते हैं जैसे विभीषण जबकि 

विभीषण की दृढ़भक्ति अद्भुत है

उन्हें राम के चरणों में बहुत विश्वास है

विभीषण को चिरजीविता का वरदान मिला है उनमें हमें सद्गुणों की खोज करनी चाहिये


सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥



रावण तो दंभी ठहरा


ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार।

तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार॥180॥


फिर भी


अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥


पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥

जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥




जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥

अगर आप कल्याण चाहते हैं शुभगति चाहते हैं तो



सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥3॥

आचार्य जी ने इसकी विस्तृत व्याख्या की

लक्ष्मण जी तो सीता जी के कुंडल नहीं पहचान पाये क्यों कि सीता जी को वे मां के रूप में देखते थे ( ऐसे संबन्ध थे बाद में हमारे संबन्धों को कलंकित करने का काम विदेशी आक्रमणों के बाद बहुत हुआ)


चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥

गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥

आचार्य जी ने चौदह भुवनों के नाम बताये


यहां तुलसीदास ने अकबर की ओर भी संकेत किया

 


काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥

..

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।

परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥