सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥
प्रस्तुत है मानुष*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
476 वां सार -संक्षेप
*कृपालु
कलिकाल में काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर आदि विकारों का बाहुल्य है लेकिन यह विभिन्न रूपों में विद्यमान ऋषिसत्ता ही है जो क्षणांश ही सही, क्योंकि बाकी समय संसारत्व के कारण भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य बैठाना कठिन होता है, हमें सदाचार सद्व्यवहार सद्विचारों के लिये प्रेरित उत्साहित करती है
संसारत्व से हटकर आर्षचिन्तन को ही हमारे अन्दर प्रवेश कराने के लिये आचार्य जी नित्य हमें इन संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित करते हैं
*आत्मस्वरूप में हम प्रविष्ट होने की चेष्टा करें संगठन का महत्त्व समझते हुए हमारे अन्दर रामत्व का प्रवेश हो यही तो इन संप्रेषणों का उद्देश्य है*
निश्चेष्ट होकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।..
आइये एक बार फिर से रामचरितमानस का आश्रय लेते हैं जो एक अद्भुत कथा है और इसमें बीच बीच में इतने सूत्र सिद्धान्त तुलसीदास जी देते चलते हैं जो स्वयं में एक एक ग्रंथ के बराबर हैं
सुन्दर कांड में
रावण दरबार में हम प्रवेश कर गये हैं
रावण पत्नी से अनुरक्त है लेकिन उसके पिता शम्बर से भयाक्रांत है भक्त विभीषण समझा रहे हैं राम क्या हैं
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥39ख॥
माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥
लेकिन दुष्ट का स्वभाव है कि उसे दम्भ बहुत होता है
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥2॥
माल्यवंत स्वयं चले गये
लेकिन विभीषण नहीं माने
भक्त भयभीत नहीं होता
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥
ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए। साधु का अपमान तुरंत ही संपूर्ण कल्याण की हानि कर देता है
शम्बर की कितनी पुत्रियां थीं आदि जानने के लिये यह संप्रेषण सुनें