19.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अन्तरिक्ष उद्वेलित धरती आकुल व्याकुल 

भोग-भवन निश्चिंत जिंदगी सुविधा-संकुल

अन्तराग्नि उठ जाग भोग-भव भस्मसात कर

 उठ दहाड़ पुरजोर जी रहा क्यों मर मर कर।



प्रस्तुत है वरूथिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  478 वां सार -संक्षेप

*आश्रय देने वाला


भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।2।।


मार्गान्तरित श्रद्धा दुर्दशा को प्राप्त होती है,और हो भी गई

(श्रद्धा- आफताब, निधि- सूफियान )

अपनी अपनी श्रद्धा निधि की संरक्षा करना हमारा धर्म है

उन्हें अनाथ न छोड़ें



विषम परिस्थितियों में अपने को झोंककर तुलसीदासजी ने मानस की रचना की 

श्री रामचरित मानस का उद्घोष है उसकी मूल शिक्षा है कि हम भारत वर्ष की रक्षा शौर्य शक्ति से संपन्न होकर बुद्धि संकल्प के साथ संगठन का महत्त्व समझते हुए करें


मानस का अवगाहन करें इसमें डूब जायें तो द्विगुणित शतगुणित आनन्द की प्राप्ति होगी इसमें अतिशयोक्ति नहीं


स्वान्तः सुखाय में निमज्जित आचार्य जी की अत्यन्त प्रभावकारी वाणी में आज कल हम सुन्दर कांड में प्रविष्ट हैं

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा...



जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए॥

हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥4॥


जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।

ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥42॥


 आचार्य जी ने गीतावली की भी चर्चा की उसमें वह प्रसंग देखें

जब रावण ने विभीषण को लात मारी

बताते चलें

वैवस्वत मनु श्राद्धदेव की वंशावली की कड़ी पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक  हविर्भू से हुआ  उनसे  दो पुत्र उत्पन्न हुए -- महर्षि अगस्त्य, विश्रवा 

विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं - एक थी  सुमाली एवं  ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण


उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥

बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥



, कुम्भकर्ण उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इडविडा- जिससे कुबेर तथा विभीषण उत्पन्न हुए।


ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा।

विभीषण शीघ्र ही समुद्र के इस पार (जिधर श्री रामचंद्रजी की सेना थी) आ गए। वानर सेना ने उन्हें  आते देखा तो लगा कि शत्रु का कोई दूत है


भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥


राम जी का प्रण है शरणागत के भय को हर लेना

शरणागत की रक्षा वही कर सकता है जो शक्तिसंपन्न है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अटल बिहारी जी का नाम क्यों लिया चीन यूक्रेन रूस का नाम किस प्रसंग में आया

जानने के लिये सुनें