20.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रयास हो कि शक्ति बुद्धि के समीप ही रहे, 

प्रयास हो कि युक्ति देशभक्ति में बनी रहे, 

प्रयास हो कि आत्मबोध हर समय बना रहे, 

प्रयास हो वितान शौर्य शील का तना रहे।



प्रस्तुत है हैरिकारि *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  479 वां सार -संक्षेप

*चोरों के शत्रु



भगवान् राम का केवल यही उद्देश्य होता कि रावण को समाप्त करना है तो बैठे बैठे उसे भस्मीभूत कर देते लेकिन उनका उद्देश्य था  बिखरे हुए समाज को संगठित करना 

त्रेतायां मंत्रशक्तिश्च, ज्ञानशक्तिः  कृते युगे।

द्वापरे युद्धशक्तिश्च, *संघशक्तिः कलौ युगे*।।


कलियुग ही नहीं हर युग में संगठन की आवश्यकता रही है तुलसीदास जी ने भी अनुभव किया कि अंधकार फैला है समाज इस समय बिखरा हुआ है और वह संगठित होकर ही दुष्ट अकबर के शासन से मुक्त हो सकता है तो उन्होंने मानस की रचना कर डाली जिससे वह प्रेरणा ले सके

इसी मानस के संदेश को लेकर हम भी संगठन स्वाध्याय संयम आदि में प्रवृत्त हों यह उद्देश्य है इन सदाचार संप्रेषणों का


भारत भूमि भोग भूमि न होकर आत्म से परमात्म की ओर ले जाने वाली चिन्तन अध्यात्म कर्म धर्म की भूमि है


यहां अवतरित ऋषियों  में संपूर्ण सृष्टि के मर्म को जानने की पात्रता उत्पन्न हो जाती है

हमने संपूर्ण विश्व को अपना परिवार माना संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपना अंश माना


अहं ब्रह्मास्मि दम्भ नहीं विश्वास है


संसार में रहते हुए भी संसार के सत्य को जो जान लेते हैं वे   समस्याओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं



The world is too much with us; late and soon,

Getting and spending we lay waste our powers;

कहकर कवि विलियम वर्ड्सवर्थ बता रहे हैं कि सांसारिकता की अधिक मात्रा से हम पशु से भी गये गुजरे हो जाते हैं


वैभव विलास का ही हम जीवन न जियें आत्मनियन्त्रण    आत्मचिन्तन न खोयें इसी के लिये आचार्य जी हमें सचेत करते रहते हैं हमें अन्धकार में अपना दीपक जलाना होगा


हम भी अपने पूर्वजों की तरह पराक्रमी चिन्तक विचारक संयमी मार्गदर्शक सपूत बन सकते हैं



आइये चलते हैं सुन्दर कांड में

विभीषण जी महाराज राम जी के पास पहुंच गये


भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥


तो राम जी कहते हैं 


कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।

अपनी शक्ति को नष्ट करके हम शरणागत की रक्षा नहीं कर सकते


विभीषणजी  रामजी की शरण में आ गये हैं अब तो उनका कल्याण निश्चित है



भगवान् राम को अपने भाई लक्ष्मण पर कितना विश्वास है कि


जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।

जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अनुराग जी सुनील जी की चर्चा क्यों की पशु खूंटे पर ही मर जायेगा किसने कहा आदि जानने के लिये सुनें