3.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 3 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुलसी सरनाम गुलाम है राम कौ जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।

मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो लेबे को एक न देबे को दोऊ।


प्रस्तुत है मस्कर -माथ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 3 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  462 वां सार -संक्षेप

मस्कर =ज्ञान

माथ =  मार्ग


इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इन सदाचार संप्रेषणों में समय की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी उत्साहप्रद सद्विचारों का व्यवस्थित अभिव्यक्तिकरण हो रहा है


तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥4॥


मनुष्य का जीवन देवताओं के जीवन से भी श्रेष्ठ है यदि वह कर्म और उस कर्म के मर्म को समझता रहे जिसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति ही धर्म है


धर्म संपूर्ण सृष्टि को धारण करता है सृष्टि का नियमन और नियन्त्रण करता है


अस्त व्यस्त होने पर लयकाल   परिलक्षित होता है


इस अनुभूति के साथ भारत वर्ष की मनीषा विषम परिस्थितियों में भी व्याकुल नहीं होती

आचार्य जी ने यह भी बताया कि राष्ट्र और समाज की वास्तविक शक्ति कौन लोग हैं



छद्मवेशी अकबर की , जिसे बहुत से लोग अपना हितैषी मानते थे बहुत से विद्वान पण्डित उसकी चाटुकारिता में संलग्न थे, तुलसीदास जी ने उपेक्षा की

रामजन्मभूमि की दुर्दशा देखकर तुलसीदास जी ने प्रण किया कि 


(जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।)


जिस प्रकार शिव तांडव स्तोत्र के रचयिता 

ज्ञानार्जन शिवार्चन करने वाले रावण को उसके समर्थकों खर दूषण त्रिशरा सुबाहु आदि को भगवान् राम ने स्थान स्थान पर फैली असंगठित शक्तियों को संगठित करके परास्त किया था उसी प्रकार इस अकबर से राष्ट्र को मुक्त करना है

इसके लिये उन्होंने मानस की रचना की  मानस के 

सुन्दरकांड में हनुमान जी, जिन्हें देशभर में फैले असंगठित लोगों का प्रेममय संगठन करने वाले भगवान् राम पर पूर्ण विश्वास है,का ही सारा कार्यव्यवहार है 

तुलसीदास जी की तरह समर्थ गुरु राम दास जी मालवीय जी अशोक सिंघल जी बूजी के लिये  शक्ति भक्ति विवेक उत्साह के परिचायक हनुमान जी महत्त्वपूर्ण रहे


कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।


लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥

मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1


राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥

एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥


आचार्य जी ने हनुमान जी की एक और विशेषता बताई कि उन्होंने कालनेमि और विभीषण को पहचानने में कैसे अन्तर किया यही हनुमानत्व हमें धारण करना है राष्ट्र के लिये घातक छद्मवेशियों को हम भी पहचानें


न्याय के लिये अपने बन्धु को दंड देना गलत नहीं चाहे हम कौरव पांडव प्रकरण देख लें अमर विभीषण गलत नहीं थे


पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥2॥


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥


कल प्रातः अपने पूर्व आचार्य एवं  वर्तमान में ए डी बेसिक( झांसी मंडल) श्री अरुण जी शुक्ल की पूज्य माता जी का आकस्मिक निधन हो गया था । उनकी अंतिम यात्रा उनके यशोदा नगर स्थित आवास से आज प्रातः 9 बजे ड्योढ़ी घाट के लिये प्रारम्भ होगी।