प्रस्तुत है निष्प्रतिद्वन्द्व *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
480वां सार -संक्षेप
* अनुपम
स्थान :अयोध्या
आचार्य जी आज माता जी बड़े भाईसाहब सुनील जी सपत्नीक अभय प्रताप जी राम कुमार जी के साथ अयोध्या में हैं
आचार्य जी को भाव विचार क्रिया की अद्भुत त्रिवेणी की जो अनुभूति और अभिव्यक्ति प्राप्त है उसी के कारण इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें प्रेरणा मिलती है
सकारात्मक सोच रखें तो यह संसार आनन्दार्णव है
भारतवर्ष में परिवार की अनुभूति सर्वत्र होती है
परिवार का भाव विचार करने योग्य है और अपनी भावी पीढ़ी को सिखाने योग्य है परिवार में आयुवृद्ध लोगों से भी सीखना चाहिये
हमारा आत्मविस्तार होगा तो हमें आनन्द की अनुभूति होगी हमें अच्छाइयों की खोज करनी है बुराइयों को दूर करना है सद्गुण प्राप्त करने के लिये ग्रंथों का सहारा लें
नानाश्रान्ताय श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम।
पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति॥”
पुष्पिण्यौ चरतो जङ्घे भूष्णुरात्मा फलग्रहिः ।
शेरेऽस्य सर्वे पाप्मानः श्रमेण प्रपथे हतश्चरैवेति ॥
कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपाद्यते चरंश्चरैवेति ॥
चरैवेति का सिद्धान्त जीवन से अलग न हो इसका ध्यान दें
आचार्य जी से आज प्रातः फोन पर जो वार्ता हुई उसके आधार पर जो सुझाव मिले वे अपने युगभारती परिवार के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि नित्य निश्चय करके हम लोग अपने चार पांच भाइयों से संपर्क करके एक दूसरे का कुशलक्षेम पूछें
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के विषय लेकर मानस के कुछ पक्ष लेकर वेबिनार आयोजित करें
छोटे बच्चों के कार्यक्रम बनायें
आइये चलते हैं मानस में
मानस में हमें जीवन जीने की शैली जीवन के बहुत सारे सिद्धान्त व्यवहार मिलते हैं
यह रचना उस समय हुई जब देश संकटों से घिरा हुआ था और समाधान खोजे नहीं मिल रहे थे
सुन्दरकांड में
भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥
लगता है यह मूर्ख हमारा भेद लेने आया है, इसलिए मुझे लगता है कि इसे बाँध रखा जाए।श्री रामजी ने कहा तुमने नीति तो अच्छी विचारी, परंतु मेरा प्रण तो है शरण में जो आये उसके भय को हर लेना
संगठन में जब लोग संयुत होते हैं और उन्हें महत्त्व मिलता है तो उन्हें लगता है कि संगठन उन्हीं के भरोसे चल रहा है
जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥
जौं सभीत आवा सरनाईं। रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥4
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥
श्री राम जी ने हँसकर कहा- दोनों ही स्थितियों में चाहे वह भेद लेने आया हो या शरण में आया हो उसे ले आओ। तब अंगद और हनुमान सहित सुग्रीव जी 'श्री रामजी की जय हो' कहते हुए चले