*चलो चलें राष्ट्र -निर्माण की ओर चलें*
प्रस्तुत है आमोदन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
481वां सार -संक्षेप
* प्रसन्न करने वाला
धर्म के मर्म को सदैव प्रेषित करने वाले स्वधर्म का पालन करते हुए एक शिक्षक के रूप में आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं
आचार्य जी कल अयोध्या
(श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥)
और छपिया से लौट आये हैं बताते चलें गोण्डा जनपद के गांव छपिया में स्वामीनारायण (अक्षरधाम मंदिर से प्रसिद्ध)का आविर्भाव 1781 में घनश्याम पांडे के रूप में हुआ था। 1792 में, उन्होंने नीलकंठ वर्णी नाम अपनाते हुए मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में संपूर्ण भारत की यात्रा शुरू की थी
अयोध्या काशी मथुरा चित्रकूट रामेश्वरम द्वारका आदि भारतवर्ष के ऐसे स्थान हैं जहां श्रद्धा के स्वरूप के दर्शन होते हैं श्रद्धा विश्वास से उत्पन्न होती है यही श्रद्धा भक्ति से बलवती होती है बलहीन भक्ति बोझ होती है
भक्ति में शक्ति की अनुभूति कर संकल्प में व्यवहृत करते हुए क्रिया में उसे लायें
राष्ट्र के प्रति संकल्प की अद्भुत अनुभूति कराने का प्रयास अनगिनत महापुरुषों ने किया है
हम हिन्दू आत्मस्थ होकर विचार करें कि संगठित होने का भाव अपने अन्दर क्या ला पा रहे हैं
अंग्रेजियत को लादे समाज को बदलने का संकल्प हमें अपने घर से लेना होगा
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः वाले भाव में उतरकर आइये प्रवेश करते हैं कल्याणकारी सुन्दर कांड में
जिससे हमारे अन्दर भक्ति भाव अनुरक्ति संयम साधना का प्रवेश हो और हम उठ सकें
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥
हमारे पास छुपाने के लिये कुछ नहीं है प्रकट करने के लिये सब कुछ है छुपाने से शक्ति का ह्रास होता है
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥
भगवान् राम भावुक हो गये
अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥1॥
अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥
कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥2॥
विभीषण जी को पहले ही लंकेश कह दिया ताकि उनके अवचेतन मन में यह बात बैठ जाये कि वो लङ्केश हैं
(अवचेतन मन इतना शक्तिशाली है कि उसे जो भी बातें कही जाए, वही बातों को वह सच कर देता है )
तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया यतीन्द्रजीत सिंह का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें