23.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 23नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥

जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा



लोभ, मोह, मत्सर , मद और मान आदि दुष्ट तभी तक हृदय में निवास करते हैं, जब तक कि धनुष,बाण,  तरकस धारण किए हुए  भगवान् श्रीराम हृदय में नहीं बसते



प्रस्तुत है धुर्य *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  482वां सार -संक्षेप

* बोझ संभालने के योग्य



हमारे अंदर अपने परिवार अपने परिवेश अपनी जीवनशैली से उत्पन्न सद्भावों के अंकुरित होने पर आये सद्विचारों के कारण ही हम इन सदाचार वेलाओं के प्रति जिज्ञासु और उत्सुक रहते हैं

यद्यपि मार्गान्तरित शिक्षापद्धति और जीवनशैली

के कारण   विश्वास की कमी आई  जिसके कारण विकृत समय प्रबन्धन के चलते बहुत सी अच्छी बातें हमें प्रभावित नहीं करती 


इनमें अतिशयोक्ति नहीं कि सदाचार के लिये संध्या -वन्दन,प्रातःकाल जागरण,सुपाच्य सादगीयुक्त भोजन आवश्यक हैं

अष्टांग योग बहुत महत्त्वपूर्ण है


इन सदाचार संप्रेषणों में निहित तत्त्वों के दर्शन की हमें क्षमता प्राप्त हो आचार्य जी ऐसी कामना करते हैं

भाव जगत में उपस्थित होकर

 अपने मानस को तैयार करें

सदाचार स्वाध्याय मनोयोग चाहता है


मानस का नित्य पाठ करें स्वभाव में परिवर्तन आयेगा

आइये स्वस्थ मानस के साथ मानस में प्रवेश करते हैं

सुन्दर कांड में आगे


श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।

त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥


विभीषण जी से जो प्रश्न भगवान् राम ने पूछे उससे स्पष्ट हो रहा है कि उनमें अपनापन उत्पन्न हो रहा है

फिर विभीषण उपदेशात्मक स्वर में बोल जाते हैं

..तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥3॥...


तब राम जी ने जो उत्तर दिया वो गीता से मिलता जुलता है

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥

जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥1॥

साधुता आने पर  प्राप्य हमें प्राप्त होती हैं


सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥3॥


आत्मानुभूति की पराकाष्ठा क्या है राजेश्वारानन्द जी का नाम क्यों आया

आदि जानने के लिये सुनें