25.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई॥

सक सर एक सोषि सत सागर। तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥1॥



प्रस्तुत है लघुवासस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  484 वां सार -संक्षेप

* हल्के और निर्मल वस्त्र धारण करने वाला



हम लोग मनोजवं मारुततुल्यवेगमं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं  हनुमान जी की शरण में हैं हनुमान जी की शरण में आकर ऊर्जा प्राप्त कर अपने कर्म और करण की ओर उत्थित हों


आत्मबल सारे बलों का सिरमौर है

भक्ति का अर्थ समर्पण है लेकिन समर्पण का अर्थ लेकिन निष्क्रियता नहीं है

निष्क्रिय समर्पण बोझ है अपने अन्दर के दम्भ को समाप्त करने वाला समर्पण शक्ति है


हमारे यहां का उपासना का स्वरूप शक्ति प्राप्त करने का है


भयानक परिस्थितियों को भांपकर उसके अनुसार कार्य करके हमारे इष्ट देवताओं ने जो इतिहास बना दिया है वह हमें प्रेरित करने के लिये पर्याप्त है


आज भी रावणत्व के उत्पातों को समाप्त करने के लिये हमें अपने रामत्व को जगाना होगा


मानस में प्रवेश कर शक्ति बुद्धि विचार अर्जित करें

धन आवश्यक है लेकिन वह स्व के लिये हो स्व की अनुभूति करें प्रत्येक क्षण


हम एक एक व्यक्ति शक्ति का पुंज बनकर उभरेंगे

भारत के उज्ज्वल भविष्य से ही विश्व का भविष्य उज्ज्वल होगा


आइये चलते हैं सुन्दर कांड में

जहां  रावण के प्रमुख दूत


 शुक रावण को समझा रहे हैं





द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।

दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि॥54॥


अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥

नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥2॥

...

शुक की अन्तर्कथा अद्भुत है



पूर्व जन्म में शुक एक वेदज्ञ एवं ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण था वह  वानप्रस्थियों की विधि से वह अपने धर्म-कर्म करते हुए वन में रहता था | यज्ञों के माध्यम से सदैव देवताओं की सहायता करने वाला वह ब्राह्मण राक्षसों का विरोधी था, जिसके परिणाम स्वरूप वज्रद्रंष्ट नामक एक  राक्षस शुक्र से बदला लेने का अवसर ढूंढने लगा | एक दिन उस ब्राह्मण के आश्रम में अगस्त्य मुनि पधारे और उनसे भोजन कराने का आदेश दिया और स्वयं स्नान करने चले गए। अच्छा अवसर जान करके बज्रद्रष्ट अगस्त्य के वेश में उस ब्राह्मण के पास पहुंचा और मांसाहार कराने का आदेश दिया | ब्राह्मण ने उस राक्षस को अगस्त्य मुनि समझ मांसाहार की व्यवस्था की | अपना प्रयोजन सिद्ध करके वह राक्षस अंतर्ध्यान हो गया, और जब अगस्त्यमुनि भोजन करने बैठे तो अपने समक्ष मांसाहार देख  क्रोधित हो गए और ब्राह्मण को श्राप दे दिया कि हे दुष्ट तूने मेरे समक्ष राक्षसी भोजन परोसा है अतः तू राक्षस हो जाय | ब्राह्मण ने निवेदन किया कि हे मुनिवर यह भोजन आप के आदेश अनुसार ही बना है | तब अगस्त्यमुनि ने ध्यान लगाकर उस राक्षस के क्रियाकलाप को जाना | और ब्राम्हण से कहा कि तू राक्षस योनि में जन्म तो लेगा लेकिन भगवान राम के दर्शन मात्र से तेरे साररे पाप समाप्त हो जायेंगे  

वही ब्राह्मण शुक राक्षस हुआ


(स्रोत अध्यात्म रामायण गीता प्रेस)


आन्तर्कथाओं का भी अध्ययन करें जिनसे हमें भारतीय संस्कृति का बहुत विस्तार मिल जायेगा


रावण उद्दंड है रावण सचिव से लक्ष्मण का पत्र पढ़वाता है


सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई॥

भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा॥1॥


आचार्य जी ने राम के नेतृत्व की तरह किसके नेतृत्व को कहा आदि जानने के लिये सुनें