26.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जौं तेहि आजु बंधे बिनु आवौं। तौ रघुपति सेवक न कहावौं॥

जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर ई॥



प्रस्तुत है ललाटूल *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  485 वां सार -संक्षेप

* उन्नत मस्तक वाला


आचार्य जी कामना करते हैं कि    राष्ट्रानुकूल शक्ति बुद्धि विचार चिन्तन से संयुत रहते हुए इन सदाचार वेलाओं के विचारों से हम लाभान्वित हों



क्रूरता से हमारे चिन्तन संकल्प विचार विश्वास को डिगाया नहीं जा सकता शीशगंज गुरुद्वारा इसकी गवाही देता है हिन्दुत्व को बचाने के प्रथम बलिदानी पुष्प गुरु तेग बहादुर को मात्र नमन न करते हुए उसके भाव को अपने अन्दर ज्वाला के रूप में जलायें

केन्द्र सरकार भी इस ओर प्रयासरत है 

केन्द्र सरकार ने कुछ समय पूर्व श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के शहीदी दिवस 26 दिसम्बर को हर वर्ष 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाने का ऐतिहासिक निर्णय भी लिया था


सिख (शिष्य ) हमारे त्याग तप चिन्तन भावना विचार समर्पण का प्रतीक है परमात्मा  का शिष्य है आत्मबोधत्व  मूल  हिन्दुत्व का शिष्य है


भारतीय अस्मिता को जाग्रत करने वाले ग्रंथ  महामानव की अमिट स्मृति

    राम चरित मानस में आइये प्रवेश करते हैं


भगवान राम की संतति विश्राम की आकांक्षी नहीं है


शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की आवश्यकता को समझते हुए आइये चलते हैं सुन्दर कांड में




बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥



लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥1॥


अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥

संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥3॥


ऐसा कहकर श्री राम जी ने धनुष चढ़ाया। यह मत लक्ष्मणजी को बहुत अच्छा लगा। भयानक (अग्नि) बाण के संधान से समुद्र के हृदय के अंदर अग्नि की ज्वाला उठी


दुष्ट के साथ समझौते नहीं होते दुष्ट के दम्भ का दलन अपार शक्ति द्वारा किया जा सकता है


इसी के आगे आचार्य जी ने क्या बताया


प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने क्या समझाने का प्रयास किया

जानने के लिये सुनें