प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
प्रस्तुत है नयचक्षुस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 नवम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
486 वां सार -संक्षेप
* दूरदर्शी
संसार में रहते हुए नियमित कर्म धर्म का निर्वाह करते हुए भगवद्कृपानुभूति का अनुभव करते हुए पूर्वजन्म के प्रारब्ध के प्रभावों से सामञ्जस्य बैठाते हुए मनुष्यत्व जाग्रत करने के लिये शक्ति सामर्थ्य शान्ति पाने के लिये हमें अध्यात्म का मार्ग चुनना चाहिये
अध्यात्म से समस्याएं स्वयं सुलझाने का मार्ग प्राप्त हो जाता है
आज भी प्रकृति और प्रवृत्ति से संपन्न अध्यापकों से युक्त विद्यालयों पाठशालाओं की आवश्यकता है ऐसे अध्यापक छात्रों को उनके जीवन में यशस्विता प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षित करें
दुनिया को कुछ भी देने का भाव रखने वाले
भारत को विश्वगुरु की संज्ञा मिली बाद में हमारे देश का संसार तो भटका लेकिन उसका सार जीवित रहा
हम संकल्प करें तो भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है इसके लिये आवश्यक है कि हम आत्मबोध कभी न डिगने दें हम ज्ञान के उपासक हैं
प्रकृति के हर तत्त्व को हम देवता मानते हैं
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥
ऐसी हमारी संस्कृति है
आइये चलते हैं सुन्दर कांड में
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
ताड़ना यातना नहीं प्रशिक्षण है
संत गिर्राज शास्त्री महाराज से दीक्षित महाराज अनिरुद्ध जी कहते हैं ताड़ना अर्थात् देखना
प्रशिक्षण की ताड़ना अनिवार्य है
आचार्य जी ने इसकी विस्तृत व्याख्या की
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥4॥
प्रभु राम के प्रताप से मैं समुद्र सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है । फिर भी प्रभु राम की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता ऐसा वेद गाते हैं। अब आपको जो अच्छा लगे, मैं तुरंत वही करूँ
नल और नील को वरदान मिला कि वो जो पत्थर पानी में फेंकेंगे वह तैरेंगे
एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥3॥
देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥4॥
श्री रामजी का भारी बल और पौरुष देखकर समुद्र हर्षित होकर सुखी हो गया। उसने उन दुष्टों का सारा चरित्र राम जी को सुनाया। फिर चरणों की वंदना करके समुद्र चला गया॥
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥60॥
इस प्रकार आज इस सुन्दर कांड का समापन हो रहा है
इसके अतिरिक्त डा पङ्कज डा पवन मिश्र का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें