28.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 1॥




प्रस्तुत है  जितश्रम *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  487 वां सार -संक्षेप

* परिश्रम करने का अभ्यस्त


मन और शरीर से क्षणांश के लिये सही हम अलग होकर आनंद की अवस्था प्राप्त करें यही उद्देश्य है इन सदाचार संप्रेषणों का

इस संसार में रहना चलना सहज स्वाभाविक गुण है अवस्था है और आवश्यकता भी है

जड़ को  चेतन अपने साथ संसरित करता रहता है


चलना रुकना दार्शनिक सिद्धान्त हैं सामान्य मनुष्य के लिये हमारे ऋषियों चिन्तकों ने सिद्धान्त सूत्र गढ़े हैं कि क्या करना सही है क्या सही नहीं है

कोई भी व्यक्ति परेशान नहीं होना चाहता

मानस के कथाक्रम में इस संसार को मूल तत्त्व और सांसारिकता  दोनों से अद्भुत  ढंग से तुलसीदास जी महाराज ने संयुत किया है



सात को शुभ मानकर और आठ को माया मानकर तुलसीदास जी ने मानस को सात सोपानों में बनाया यद्यपि महाकाव्य आठ सोपानों का होना चाहिये


झ, ह, र, भ ,ष    दग्धाक्षर  छंदशास्त्र में अशुभ माने जाते हैं प्रारंभ में  इनके प्रयोग से  कवि पर संकट की संभावना रहती है।लेकिन कामायनी का प्रारम्भ दग्धाक्षर से है

हिमगिरि के उत्तुंग....

आइये चलते हैं मानस के लंका कांड में


मंगलाचरण की व्याख्या करने के बाद आचार्य जी ने


लव निमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड।

भजसि न मन तेहि राम को कालु जासु कोदंड॥

की व्याख्या की आचार्य जी ने अपने अध्यापक प्रो माता प्रसाद मिश्र जी की चर्चा की 



काल के भाग लव, निमेष, परमाणु, वर्ष, युग और कल्प जिनके प्रचंड बाण हैं और काल जिनका कोदंड अर्थात् धनुष है, हे मन! तू उन राम को क्यों नहीं भजता?


इसके बाद कथा  है


सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।

अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥


सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।

नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं॥


भावार्थ

जाम्बवान ने हाथ जोड़ कहा हे नाथ! (सबसे बड़ा) सेतु तो आपका नाम ही है, जिस पर चढ़कर मनुष्य संसाररूपी समुद्र से पार हो जाते हैं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया आचार्य जी आज कहां आये हैं जानने के लिये सुनें