29.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  वेगवाहिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  488 वां सार -संक्षेप

* तेज



बहुत सी अदृश्य शक्तियां हमारे अन्दर छिपी रहती और हमें पता ही नहीं चलता जीवन बीत जाता है लेकिन जिन्हें पता चल जाता है तो फिर कहना ही क्या शरीर को संयमित कर हम भी अनुभूति करने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से कुछ अनुभूतियां होंगी ही 

तुलसीदास जी को भी  ऐसी अनुभूतियां हुईं और उन्होंने मानस की रचना कर डाली

आइये प्रवेश करते हैं मानस के उस भाग में जहां

शौर्य, शक्ति, उत्साह, पराक्रम की उपासना, विजय का विश्वास, आत्मीयता युक्त संगठन साधना की झलक मिल रही है



सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।

अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥


कंटक को समाप्त करने के लिये कटक को अब पुल तैयार कर उतार लिया जाये


भगवान् राम के जन्म से पूर्व ही  कंटक रावण को मारना तय हुआ था राजा दशरथ द्वारा कराये गये  पुत्रेष्टि यज्ञ में सभी देवों ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की

विष्णोपुत्रत्वमाच्छ कृत्वात्वमानं चतुर्विंधम्। 

तत्र त्वं मानुषो भूत्वा प्रवृद्धम लोक कण्टकम् ॥ 

- वाल्मीकि रामायण 15 वां सर्ग 

हे भगवन्! आप पुत्र भाव को प्राप्त होइये। आप अंश सहित चारों भागों में विभक्त होकर दशरथ जी का पुत्र होना स्वीकारें और मनुष्य शरीर धारण कर  लोक कण्टक रावण का नाश कीजिये | 

भगवान् ने देवों की प्रार्थना स्वीकार ली

लंका कांड में आगे 

सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।

नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं॥


अनुभव और विवेक के भंडार जामवंत वृद्ध थे लेकिन कलियुग में रह रहे वृद्धों की तरह उपेक्षित नहीं थे उन्होंने नल नील को वही अनुभूतियां याद दिला दीं


धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा॥

सुनि कपि भालु चले करि हूहा। जय रघुबीर प्रताप समूहा॥


संगठन में अपार बल होता है आज भी इसकी महत्ता है इसे समझने का प्रयास करें आज जो कंटक हैं उन्हें भी समाप्त करने की आवश्यकता है

राम कथा हमारा इतिहास है

इस इतिहास पर विश्वास करते हुए भविष्य की संरचना करने की योजना बनायेंगे तो आज की परिस्थितियों में हम उस बल विक्रम को अपने अन्दर ला सकेंगे और सफल भी होंगे

चारणी वृत्ति से बचें

हमारा धर्म वैश्विक है आत्मविस्मृत होकर हम बैठे हैं हमें जागना होगा


परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥

करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥



सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥

संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने झगड़ेश्वर मंदिर की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें


YouTube (https://youtu.be/YzZRHAHbK1w)