5.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 5 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनुकूलित आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 5 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  464 वां सार -संक्षेप

अनुकूलित =सम्मानित


आइये सुंदर कांड में पुनः प्रवेश करते हैं



सुन्दर कांड का पाठ मात्र दुःख के निवारण हेतु ही नहीं करें अपितु हनुमान जी के  चरित्र के सार तत्त्व को ग्रहण करें इसी कांड में हम मां सीता में आत्मविश्वास, विषम परिस्थितियों से जूझने की बौद्धिक मानसिक क्षमता, मातृत्व,संयम,दृढ़ता  आदि की झलक भी पाते हैं


सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥

अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥4॥

कथा में आगे..

हनुमान जी ने संकेतों से ही समझ लिया क्यों कि वो बहुत बुद्धिमान हैं 


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥

सीता जी अपने पैरों में देख रहीं थीं क्यों कि आस पास तो राक्षस ही राक्षस हैं उन्हें क्यों देखतीं 

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।

हनुमान जी में मातृ भाव जाग्रत हो गया 

परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥8॥


तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥

तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥1॥

सीता जी में भरपूर आत्मशक्ति है उसकी झलक देखिये 


सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥5॥


तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥

चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥1॥



जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥

सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥2॥



रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दु:ख भागा॥

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥


राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥

यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥5॥



बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥

देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥4॥


आचार्य जी ने परामर्श दिया 13 वें से 17 वें दोहे तक का पारायण करें 

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास

जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥13॥...



आचार्य जी ने कल कानपुर में संपन्न हुए एक कार्यक्रम की चर्चा की जिसमें आचार्य जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया अक्षय उपस्थित थे

आचार्य जी ने हम युग भारती सदस्यों को परामर्श दिया कि शुद्ध आत्मीय भाव से  एक दूसरे के संपर्क में रहें