1.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 1 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सोइ रघुबीर प्रनत अनुरागी। भजहु नाथ ममता सब त्यागी॥

मुनिबर जतनु करहिं जेहि लागी। भूप राजु तजि होहिं बिरागी॥


प्रस्तुत है  हर्षविवर्धन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 1  दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  490 वां सार -संक्षेप

* आनन्द को बढ़ाने वाला



पर्यावरण, समाज, हिन्दुत्व  और राष्ट्र के लिये जूझने वाले बहुचर्चित तपोनिरत  के . एन. ग़ोविन्दाचार्य (जन्म - ०२ मई १९४३) के आग्रह पर आचार्य जी कल बिठूर पहुंचे

गोविन्दाचार्य जी के शरीर में भौतिक शक्ति की जो कमी है उस ओर उनके निकटस्थ लोग  यदि ध्यान देंगे तो उनके संकल्प पूरे हो सकेंगे


भारतीय स्वाभिमान आंदोलन  के तत्वावधान में गंगा संवाद पद यात्रा करके समाज को अपनी आंखों से देखते हुए गोविन्दाचार्य जी 

नरोरा से  करीब 412  किमी चलकर बिठूर में हैं 


भगवान राम बहुत से गुणों जैसे समर्पण शक्ति भक्ति से संपन्न एक अवतार हैं हम भी छोटे से अवतार हैं और यदि हम सांगठनिक सामञ्जस्य बनाने का भाव अपने अन्दर भर लेते हैं तो ये सदाचार वेलाएं अपनी सार्थकता सिद्ध कर लेंगी



आइये चलते हैं लंका कांड में

सेतु बन गया है


सेतु बंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं।

अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं॥ 4॥


अत्यन्त उत्साहित वातावरण है


सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा॥

खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालु कपि जहँ तहँ धाए॥


आचार्य जी ने वाल्मीकि रामायण  जिसमें व्यूह पर जोर था की चर्चा करते हुए बताया कि तुलसीदास जी ने व्यूह पर जोर नहीं दिया क्यों कि जहां भय आशंका रहती है वहां व्यूह की आवश्यकता होती है और यहां राम हैं तो भय कैसा


आज भी हमारे वनों में शक्तिसंपन्न लेकिन असंगठित क्षेत्र है उनमें रहने वाले लोग छले जाते हैं ऐसे शक्तिसंपन्न सरल लोगों का ही संगठन भगवान् ने किया


जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं। घेरि सकल बहु नाच नचावहिं॥

दसनन्हि काटि नासिका काना। कहि प्रभु सुजसु देहिं तब जाना॥


अब यह रावण के कानों तक बात पहुंच गई


समुद्र पर पुल अचंभा था



बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।

सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ 5॥


मन्दोदरी को विश्वास है कि राम मनुष्य नहीं हैं


वह रावण से कहती है

नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों॥

तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा॥


मां जानकी को आप भगवान राम को सौंप दें

लेकिन दुष्ट कहां मानने वाला

हमें  भी इसी रावणत्व से दूर रहना है