प्रस्तुत है समदुःख *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 2 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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491 वां सार -संक्षेप
*दूसरों के दुःख को अपने जैसा दुःख समझने वाला
यह संसार ही जिनका परिवार हो जाता है वो व्यक्ति न होकर विशिष्ट व्यक्तित्व हो जाते हैं
यह व्यक्ति ही विकसित होते होते सबके प्रति प्रेम, लगाव, आदर,अनुकूल व्यवहार कहलाने वाले ईश्वरत्व में जब प्रवेश करता है तो उसकी अद्भुत गति होती है
ईश्वरत्व में प्रवेश करने वाले आनन्ददायक क्षणों में हम संसार न होकर संसार के द्रष्टा लगते हैं
इसी आनन्द की प्राप्ति के लिये हमारे ऋषियों ने चार आश्रम बनाये अन्तिम आश्रम संन्यास आश्रम में दुर्बल शरीर लेकिन प्रबल मन अनिवार्य है प्रबल मन का अर्थ है जो शरीर से दूर हो और शरीर को धारण करने वाले शरीरी के पास हो
शरीर को विस्मृत करना अध्यात्म की एक अद्भुत उपलब्धि है
इन्हीं भावों में डूबने के लिये आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में
जिसमें एक ओर संसार के उपभोग के लिये तपस्या करने वाला रावण तो दूसरी ओर संसार के कल्याण के लिये तपस्या करने वाले भगवान राम हैं
अस कहि नयन नीर भरि गहि पद कंपित गात।
नाथ भजहु रघुनाथहि अचल होइ अहिवात॥ 7॥
मंदोदरी ने रावण को बहुत तरह से समझाकर कहा किंतु उसने उसकी एक भी बात न सुनी और वह फिर सभा में जाकर बैठ गया
सभाँ आइ मंत्रिन्ह तेहिं बूझा। करब कवन बिधि रिपु सैं जूझा॥
कहहिं सचिव सुनु निसिचर नाहा। बार बार प्रभु पूछहु काहा॥
सब के बचन श्रवन सुनि कह प्रहस्त कर जोरि।
नीति बिरोध न करिअ प्रभु मंत्रिन्ह मति अति थोरि॥ 8॥
सबके वचन सुनकर रावण का पुत्र प्रहस्त हाथ जोड़कर कहने लगा - हे प्रभु! नीति के विरुद्ध कुछ भी नहीं करना चाहिए, इन मंत्रियों में बहुत ही अल्प बुद्धि है
नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढ़ाइअ रारि।
नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि॥ 9॥
इस पर दंभी पाखंडी रावण चापलूसों का मनोबल वर्धन करता है
अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई॥
सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा॥
आचार्य जी ने बेनुमूल और घमोई की जानकारी दी
फिर रावण अपने महल चला गया
बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा अजय कटियार जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें