10.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा॥

हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना॥



प्रस्तुत है नृसिंह *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  499 वां सार -संक्षेप

* पूज्य व्यक्ति


इन सदाचार वेलाओं के सांकेतिक सूत्र यह इङ्गित करते हैं कि ग्रंथों के माध्यम से समर्पित हमारे ऋषियों के अनुसंधानों  पर विश्वास करते हुए हमारा आत्मबोध जाग्रत हो धर्म कर्तव्य का अर्थ समझें

अपनी गलतियों की समीक्षा करें शौर्य को अध्यात्म से दूर करने के दुष्परिणाम हम देख चुके हैं उसे दोहरायें नहीं

समीक्षक विचारक उत्साहप्रदाता बनें

छोटी छोटी उपलब्धियों पर बहुत उल्लसित होने की आवश्यकता नहीं

शरीर मन बुद्धि चित्त के सामञ्जस्य को परखें


अपनी भूमिका को आदर्श ढंग से मनायें


राम चरित मानस का भी यही संदेश है कि आदर्श जीवन हम कैसे जियें

आजकल हम लंका कांड में हैं 

अङ्गद रावण संवाद दंभी की कमियों को व्यक्त करता है

दंभी को उसके घर में घुसकर  उसकी कमियां बताना दौत्य कर्म की एक श्रेष्ठ मिसाल है


सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु संभारि अधम अभिमानी॥

सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥


(अन्याय का फल अवश्य मिलता है चाहे इमर्जेंसी हो या गोरक्षा आंदोलन जब 

७ नवम्बर १९६६ को संसद पर हुये ऐतिहासिक प्रदर्शन में  निहत्थों पर गोलियाँ चली थीं)

अंगद कहता है


राम जी को तुमने सामान्य मनुष्य मान लिया

राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा॥

पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा॥


सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई॥

जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥


रावण अपनी प्रशंसा के पुल बांधता है अंगद याद रखता है कि वह एक दूत है


जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥


सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥



यदि ऐसा करूँ तब भी इसमें कोई विशेष बड़ाई नहीं है। मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व  नहीं

 वाममार्गी, कामी, कंजूस,  मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा,

नित्य का रोगी, लगातार क्रोध में रहने वाला, भगवान विष्णु से विमुख, संतों का विरोधी,केवल अपने ही शरीर का पोषण करने वाला,  निंदा करने वाला और  पापी - ये चौदह प्राणी जीते मृतक समान हैं।


गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर॥

कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥