11.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 धर्मार्थकाममोक्षणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।


 अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ll



प्रस्तुत है नैःश्रेयस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  500वां सार -संक्षेप

* मोक्ष या आनन्द की ओर ले जाने वाला



भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥


श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक  पार्वती जी और  शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्दर विराजमान ईश्वर को नहीं देख सकते



गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार का 

विश्वासपूर्वक  कहना था राम चरित मानस मात्र काव्य नहीं भारत का इतिहास है

इतिहास स्थान और परिस्थितियों के साथ लिखा जाता है


धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् l

पूर्ववृत्तकथायुक्तम्  इतिहासं प्रचक्षते ll


भक्त तर्कों में नहीं उलझता

विडम्बना देखिये 

जो कुतर्क करने वाले अविश्वासी होते हैं उन्हें हम बुद्धिवादी कहते हैं जिनमें भक्ति श्रद्धा विश्वास नहीं होता वे Robots की तरह हैं और इनकी भीड़ वाले स्थान पर आनन्द की कल्पना नहीं की जा सकती


आइये

भगवान् राम द्वारा संगठन के महत्त्व को समझते हुए

भक्ति का भाव साथ रखते हुए आनन्द की प्राप्ति के लिये चलते हैं अमृत तुल्य मानस में


जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥

कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥

रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥

नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥



लंका कांड में

अब तक

गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर॥

कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥


भगवान् राम की निन्दा पर यह हश्र तो होना ही था


अब आगे


कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू॥

ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे॥

और उधर

अङ्गद का आत्मविश्वास देखिये



उहाँ सकोपि दसानन सब सन कहत रिसाइ।

धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥



तव सोनित कीं प्यास तृषित राम सायक निकर।

तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम॥ 33(ख)॥


साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥

समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥



अङ्गद का पांव इतिहास प्रसिद्ध हो गया

यह अङ्गद का पांव 

भारत का विश्वास शक्ति भक्ति के साथ भूत और भविष्य भी है