भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥
डगइ न संभु सरासनु कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥
प्रस्तुत है बहुगुण *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
501वां सार -संक्षेप
* अनेक सद्गुणों से युक्त
स्थान :उन्नाव
ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई धनुष बहुत से लोग हिला भी न सकें,लोग अङ्गद का पांव हिला न सकें
हमें इन तरह के भ्रमों से बचना होगा
ग्रंथों के अध्ययन से यदि लाभ लेना है तो भ्रम का त्याग करना होगा
परिस्थितियों,शरीर, परिवेश, समय के साथ सामञ्जस्य बैठाते हुए सांसारिक कर्दम (कर्द /कर्दट भी ) में लिप्त हम लोग सांसारिक संघर्षों में विजय हों इसकी आचार्य जी नित्य कामना करते हैं
कठिन तपस्या करने के बाद भी कुछ न मांगना भारतीय संस्कृति है रावण की तपस्या भिन्न है
भक्ति श्रद्धा का भाव रखते हुए विश्वास करते हुए बिना भ्रमित हुए आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में
साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥
समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥
जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी॥
सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा॥
अरे मूर्ख! यदि तू मेरा पांव हटा सके( तो एक तरह से पांव की ओर भागने पर रावण लज्जित होगा) तो राम लौट जाएँगे, मैं सीता को हार गया
यहां हमें किसी तरह का भ्रम नहीं पालना चाहिये कि अंगद ने मां सीता को दांव पर लगा दिया भक्त अंगद का भाव निरन्तर भगवान् राम से संयुत है उसका उनसे सीधा संपर्क है राम जी ने ही उसे प्रेरित किया कि यह बात बोल दो
इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना॥
झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई ll
मेघनाद आदि अनेक बलवान योद्धा हर्षित होकर उठे। वे बहुत से उपाय करके झपटते हैं। पर पैर टलता नहीं, तब सिर नीचा करके फिर अपने-अपने स्थान पर वे बैठ जाते हैं।
दार्शनिक भाव के साथ लिखे दोहे
भूमि न छाँड़त कपि चरन देखत रिपु मद भाग।
कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥ 34(ख)॥
(जैसे करोड़ों विघ्न आने पर भी संत का मन नीति को नहीं छोड़ता, वैसे ही अंगद का चरण पृथ्वी को नहीं छोड़ता। यह देखकर रावण का मद दूर हो गया)
की आचार्य जी ने विस्तृत व्याख्या की