जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला॥
कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू॥
प्रस्तुत है बहुदक्षिण *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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503 वां सार -संक्षेप
* दानशील
स्थान :उन्नाव
भारतीय जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है कि विचार और व्यवहार में सामञ्जस्य बनाने के लिये हम लोग अपने इष्टदेवों से प्रार्थना करते रहते हैं इसका अर्थ पराश्रयता कतई नहीं है इसका वास्तविक अर्थ आत्मानुभूति है जब हम अनुभव करते हैं कि परमात्मा हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार भक्ति के रूप में विद्यमान है और जब वह व्यवहार के रूप में प्रकट होने लगते हैं तो वह व्यक्ति चर्चित प्रशंसित होने लगता है और फिर उसको आत्मसंतोष होता है यही संतोष मनुष्य का प्राप्तव्य भी है लेकिन
ओछेपन की संतुष्टि से बचें
आइये चलते हैं मानस में जहां
पक्ष में भगवान् राम और विपक्ष में रावण है
राम रावण का खेल संसार में चलता रहता है
लंका कांड में आगे
रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज।
पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज॥ 35(क)॥
शत्रु रावण,जो भोगवादी स्वार्थी असंयमी अविवेकी तामसिक यज्ञ करने वाले चापलूसों से घिरा है, के बल का मर्दन कर अंगद ने हर्षित होकर भगवान के चरणकमल पकड़ लिए। उनका शरीर पुलकित है और नेत्रों में उल्लास का जल भरा है.
और उधर रावण को मंदोदरी फिर समझा रही है
साँझ जानि दसकंधर भवन गयउ बिलखाइ।
मंदोदरीं रावनहिं बहुरि कहा समुझाइ॥ 35(ख)॥
हम लोगों के पुत्र को भी मार दिया
रखवारे हति बिपिन उजारा। देखत तोहि अच्छ तेहिं मारा॥
जारि सकल पुर कीन्हेसि छारा। कहाँ रहा बल गर्ब तुम्हारा॥
नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना॥
बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली॥1॥
स्त्री के बाण के समान वचन सुनकर रावण सुबह होते ही उठकर सभा में चला गया और सारा डर भुलाकर अत्यंत अभिमान में सिंहासन पर जा बैठा
इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा॥
अति आदर समीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी॥2॥
सुबेल पर्वत पर प्रभु श्री राम ने अंगद को बुलाया। उन्होंने आकर चरणों में सिर नवाया। बड़े आदर से उन्हें पास बैठाया
आचार्य जी ने यह भी बताया कि पक्ष और विपक्ष दोनों को देशहित का ध्यान रखना चाहिये
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दृश्यमुनि चाकमा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें