15.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥

नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥




प्रस्तुत है बहुदृश्वन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  504 वां सार -संक्षेप

* बहुत अधिक अनुभवी


स्थान :सरौंहां


उत्साह से लबरेज, नैराश्य अकर्मण्यता को दूर करने वाले आत्मबोध की शक्ति दर्शाने वाले इन सीमित क्षणों में कथा विचार व्यवहार की बातें से हम अरसे से लाभान्वित हो रहे हैं ये ऐसे क्षण हैं जिनमें हम संसारेतर भी सोच सकते हैं अन्यथा अधिकांश समय तो सांसारिक प्रपंचों में चला जाता है


किसी भी क्षेत्र में जायें समाजोन्मुखी जीवन जियें

यशस्विता के लिये आगे बढ़ें 


धर्म के लिये जियें समाज के लिये जियें 

ये धड़कनें  ये श्वास हो पुण्यभूमि के लिये कर्मभूमि के लिये ll 


गर्व से सभी कहें हिन्दु हैं हम एक हैं 

जाति पंथ भिन्नता स्नेह सूत्र एक है

शुभ्र रंग की छटा सप्त रंग है लिये ॥१॥


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः मूल भाव होना चाहिये


अपने अन्दर अवस्थित भावों के भी अंदर प्रवेश कर व्यक्ति वस्तु स्थान समाज देश अर्थात् सर्वत्र राममय संसार को देखने वाले साहित्यावतार तुलसीदास की

परम साधना की प्रतिकृति

श्रीरामचरित मानस को समझने का हम लोग प्रयास करें जो भक्ति की आराधना है

यह भक्ति की अपार शक्ति को दिखाती है


विविधरूपी सुन्दर साहित्य में जितना अवगाहन करें उतने ही अर्थ निकलते हैं ऐसे साहित्य की अद्भुत कृति है मानस


आइये चलते हैं लंका कांड में



इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा॥

अति आदर समीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी॥2॥


अधर्मी रावण के ये मुकुट नहीं चार गुण हैं


साम, दान, दण्ड और भेद

तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए॥

सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप न गुन चारी॥4॥


अंगद ने डींग नहीं हांकी

नीति की बात देखिये जिससे युद्ध करना है उसके अंदर की बातें भी पता चलें 


रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥


सैनिकों का उत्साह बढ़ाया जाता है वर्तमान नेतृत्व उनके उत्साह में वृद्धि कराता है हाल में चीन का उदाहरण हमारे सामने है

ऐसा ही उत्साह भगवान् राम बढ़ा रहे हैं 


जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे॥

प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए॥3॥