जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव।
गर्जहिं सिंहनाद कपि भालु महा बल सींव॥39॥
प्रस्तुत है बहुप्रद *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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505 वां सार -संक्षेप
* उदार
भारतीय जीवन पद्धति और भारतीय जीवन दर्शन से यह सुस्पष्ट रहता है कि हम संसार में हैं और यह संसार भी उसी तरह निर्मित किया गया है जिस प्रकार हम निर्मित किये गये हैं निर्माता तो कोई है ही जिसकी खोज हम अपने आत्म के अन्दर कर लेते हैं और साथ में जीवन जगत में व्यवहाररत रहते हैं
इसी आत्मस्थता के लिये सदैव प्रयासरत रहें
हम कौन हैं हमारा कर्तव्य क्या है और उसका निर्वाह हम किस प्रकार कर रहे हैं इसका हमेशा ध्यान रखना चाहिये
हम भोगवादी न होकर विचारवादी लोग हैं हमें अस्ताचल वाले देशों को देखकर भ्रमित नहीं होना चाहिये
हमारे मानस को विकृत करने के अनेक प्रयास चले
हमें नीचा दिखाने के प्रयास चलते रहे
लेकिन जब जब संकट आया तब तब उसके निवारण की युक्ति भी आई
सन् 1857 हो 1925 हो या 2014 हो
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
नियम है
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥
भयानक दृश्यावलि में सूर्योदय होता रहा है
प्रथा इस देश की सचमुच समंदर की सदा जैसी,
कि जिसका मन हुआ जैसा सुनी उसने उसे वैसी,
मगर विद्वान ज्ञानी जानते ऋषिवर्ग का तप-बल ,
उन्हें यह भान रहता है कि होगी रीति कब कैसी।
रामकथा में भी जब रावण द्वारा सारी धरती में उत्पात मचाया जा रहा था तो रामोदय हुआ
भोगवादी रावणी वृत्ति और योगवादी राम की शक्ति में चल रहे संघर्ष को देखने आइये चलते हैं मानस में
यज्ञ भाव रखते हुए नित्य चल रहे सदाचार संप्रेषण रूपी इस यज्ञ में आइये अपनी आहुति डालें
लंका कांड में
रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥
लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा॥1॥
अङ्गद शत्रु के समाचार ला चुका है अब आक्रमण की योजना बन रही है अंगद का आत्मबल और बाहुबल हम देख ही चुके हैं
जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे॥
प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए॥3॥
नौकरी करने वाले सैनिकों वाली सेनाएं सशंकित होकर लड़ती हैं चीन का उदाहरण हमारे सामने है और हमारी सेना मातृभूमि के लिये लड़ती है
हम लोग अपनी साधना को साधन बना लेते हैं
उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी लराई॥
निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं॥4॥
उधर रावण की और इधर प्रभु राम की दुहाई बोली जा रही है। 'जय' 'जय' 'जय' की आवाज होते ही लड़ाई छिड़ गई। राक्षस पहाड़ों के ढेर के ढेर शिखरों को फेंकते हैं तो वानर कूदकर उन्हें पकड़ लेते हैं और वापस उन्हीं की ओर कर देते हैं