राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा॥
चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर॥1॥
प्रभु रामजी के प्रताप से वानरों के झुंड राक्षसों के समूह के समूह मसल रहे हैं। वानर जहाँ-तहाँ किले पर चढ़ गए और सूर्य के समान प्रतापी श्री राम की जय बोलने लगे
प्रस्तुत है बहुमान्य *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
506 वां सार -संक्षेप
* आदरणीय
अव्यवस्थाओं बाधाओं अवरोधों का उपस्थित होना संसार का सहज स्वभाव है
बाधाओं अवरोधों को पार करते हुए संघर्षों से टकराते समय विजय की कामना करते हुए सुस्पष्ट बुद्धि विचार के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिये
आत्मशक्ति जाग्रत करना आवश्यक है यदि हम किसी के द्वारा धक्का दिये जाने पर आगे बढ़ते हैं तो वह एक ढोंग ही है
भगवान् राम के दल के एक एक योद्धा की आत्मशक्ति जाग्रत है जब कि रावण की सेना धक्के द्वारा आगे चल रही है
ये बात हो रही है लंका कांड की
भारत भ्रमित तब होता है जब उसे भारतीयत्व समझ में नहीं आता है
बहुत लम्बा समय भ्रम और भय में व्यतीत हो गया है लेकिन अब हमारी आंखें खुल गई हैं
अब हमारा विश्वास जागा हुआ दिख रहा है
आत्मशक्ति जाग्रत है इसे हाल की चीन वाली घटना में हम देख सकते हैं
प्रत्यक्ष राम रावण युद्ध आज भी चल रहा है
जिनके मन विचलित हैं स्वार्थ में रत हैं मनोबल गिरा है वो सफल नेतृत्व को भी गाली देते हैं
इन्हीं सुस्पष्ट विचार चिन्तन मनन तर्क के साथ आइये चलते हैं लंका कांड में
राक्षसों के पास साधन है और रामादल में शुद्ध मन से की गई साधना है
साधना फलवती होती है
जहां निराशा होती है वहां हाहाकार होता है लेकिन जहां उत्साह हो तो कहना ही क्या
उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी लराई॥
निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं॥4॥
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना॥
मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई॥2॥
हनुमान जी यह नहीं सोच रहे कि भगवान् राम ही चिन्ता करेंगे
हमें भी हनुमान जी की तरह सोचना है केवल वर्तमान नेतृत्व के भरोसे न रहें आस्तीन में पल रहे सांपों को पहचाने सुस्पष्ट तर्क विचार के साथ राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहें
यही देशभक्ति है
कम्युनिस्टों वामपंथियों आदि की प्रमा कुण्ठित है वे स्वार्थी हैं अपने तत्व को मानस के अंशों से मिलाकर चलें और विजय की योजना बनायें
आचार्य जी ने राम रावण युद्ध को विस्तार दिया
कवितावली में हनुमान जी के प्रबल प्रताप को आचार्य जी ने वर्णित किया
आज भी हमारे वीर हनुमान युद्ध करते हैं
सन् 1962 में भगवान् राम जैसा मार्गदर्शक नहीं था अन्यथा विजय मिलती
इसी लिये हमें राम का आदर्श गीता का ज्ञान लेकर ही आगे चलना है
अब तो अंगद भी आ गया
अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल।
रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल॥43॥
अद्भुत वर्णन चल रहा है
कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं॥
पुनि कर गहि कंचन के खंभा। कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा॥3॥