18.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी॥

अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी॥3॥


प्रस्तुत है बहुश्रुत *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  507 वां सार -संक्षेप

* विज्ञ पुरुष



अध्यात्म से हमारा सबसे बड़ा बल मनोबल परिपुष्ट होता है इसीलिये प्रतिदिन हम लोग सदाचार संप्रेषण के इन क्षणों का लाभ प्राप्त करते हैं क्यों इन संप्रेषणों में अध्यात्म की भी चर्चा होती है


अन्यथा शेष बचा दिन सांसारिक प्रपंचों और रात्रि निद्रा /स्वप्न में ही तो जाया हो जाती है


जब अध्यात्म व्यवहार में प्रवृत्त होता है तो व्यक्ति द्वारा सारी समस्याएं सुलझा ली जाती हैं


कभी कभी अध्यात्मवादी भी व्याकुल होते हैं


सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥


वशिष्ठ मुनि ने  दुःखी होकर कहा- हे भरत! सुनो, भावी बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश आदि विधाता के हाथ हैं


अपनी व्याकुलता अपनों की व्याकुलता अध्यात्म को डांवाडोल कर देती है


तब साधक को भगवत् शरण दिखती है



इसीलिये  कुछ क्षणों के लिये भगवत् शरण में जाने का प्रयास करें


मानस में कथा उतार चढ़ाव मानसिक अभिव्यक्तियां अध्यात्म के साथ स्रष्टा की सृष्टि का अद्भुत स्वरूप भारत, जो अध्यात्म आधारित है,का इतिहास है

आइये चलते हैं लंका कांड में


अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल।

रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल॥43॥


मां सीता से अमरता का वरदान प्राप्त शिवावतार हनुमान जी के साथ अंगद भी लंका में प्रविष्ट हो गये हैं अद्भुत युद्ध चल रहा है राम के बल का प्रताप देखिये कि दुर्ग में दोनों  प्रवेश कर गये



कवितावली में अत्यन्त उत्साह के साथ हनुमान जी की वीरता का वर्णन है


जाकी बाँकी बीरता सुनत सहमत सूर,

⁠जाकी आँच अजहूँ* लसत लंक लाहसी।

सेई हनुमान बलवान बाँके बानइत,

⁠जोहि जातुधान-सेना चले लेत थाहसी॥

कंपत अकंपन, सुखाय अतिकाय काय,

⁠कुम्भऊकरन आइ रह्यो पाइ आहसी।

देखे गजराज मृगराज ज्यों गरजि धायो

⁠बीर रघुबीर को समीर-सूनु साहसी॥


मानस में


अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥

लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥


भुजबल से शत्रु  सेना को कुचलकर मसलकर, फिर दिन का अंत होता देखकर हनुमान जी और अंगद दोनों कूद पड़े और थकावट रहित होकर   भगवान श्री रामजी के पास आ गये

युद्ध फिर शुरु 


मायामय युद्ध चल ही रहा है


अग्निबाण ने प्रकाश फैला दिया और उस प्रकाश से रामदल में उत्साह आ गया


और उधर रावण घबरा गया कि आधी सेना तो इन दो वानरीं ने नष्ट कर डाली लेकिन दस अवगुणों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय के प्रतीक रावण का दम्भ देखिये


उसका काल निकट था बुद्धि फिर गई थी


ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥