प्रस्तुत है निश्चक्रिक *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
508 वां सार -संक्षेप
* ईमानदार
भैया मनीष कृष्णा के आग्रह से प्रारम्भ हुआ सदाचार वेला का यह स्वरूप परमात्मा की अद्भुत योजना का एक भाग कहा जायेगा
क्षिति जल पावक गगन समीर से बना यह अधम शरीर ढोते हुए हम अपने को सुख दुःख झेलते हुए मात्र खाने पीने सोने तक सीमित कर जीवन न व्यतीत कर दें इसलिये आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारी जिज्ञासा प्रबल हो कि अध्यात्म क्या है हम चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्ययन स्वाध्याय में रत हों
हमारा रुझान अपने आत्मोत्थान के लिये सतत बना रहे
चिन्ता मनुष्य का स्वाभाविक गुण है लेकिन चिन्तन प्रयासपूर्वक कर सकते हैं
आत्मानुभूति से उत्पन्न आत्मशक्ति की अनुभूति प्रत्येक क्षण होती रहे इसी के लिये एक सरल सा सूत्रसिद्धान्त है
जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है
यह निश्चिन्तता न होकर जिज्ञासा का मूल आधार है
जैसे
भौतिक निर्माण के लिए, कृष्ण के पूर्ण विस्तार में तीन विष्णु हैं। पहले, महा विष्णु जो कुल भौतिक ऊर्जा का निर्माण करते हैं, जिसे महातत्व के रूप में जाना जाता है। दूसरे, गर्भोदकशायी विष्णु, विविधता पैदा करने हेतु सभी ब्रह्मांडों में प्रवेश करते हैं और तीसरे, क्षीरोदकशायी विष्णु, सभी ब्रह्मांडों में सर्वव्यापी परमात्मा के रूप में फैले हुए हैं. वे परमाणुओं के भीतर भी मौजूद हैं।यही मौजूदगी अद्वैतवाद के सिद्धान्त को जन्म देती है
महामनीषी तुलसीदास की एक अद्भुत चर्चित कृति मानस भगवान् राम की कथा है जिसमें रावण आदि पात्र हैं
लंका कांड में आगे
रावण का दरबार है जहां चर्चा हो रही है
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥
लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥
कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ।
गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ॥47॥
रावण को रावण बनाने वाला रावण का सबसे अधिक हितैषी माल्यवान समझा रहे हैं
जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिं बखानी॥
परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥
ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥
रावण ने तमोगुण पाये थे तमोगुणों का सबसे पहले आधार है धन फिर साधन
ऋषि भटक जाता है भोगी हो जाता है तो राक्षसी वृत्ति दिखती है
अंगद हनुमान मन्दोदरी विभीषण आदि बहुत लोग समझा चुके थे.
अब माल्यवान समझाते समझाते हार गया
सो उठि गयउ कहत दुर्बादा।
तब सकोप बोलेउ घननादा॥
कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥
वह रावण को दुर्वचन कहता हुआ चला गया। तब मेघनाद क्रोधित होकर बोला- सुबह मेरी करामात देखना। मैं बहुत कुछ करूँगा, थोड़ा क्या कहूँ?
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
आचार्य चतुरसेन की वयं रक्षामः की चर्चा की