21.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 21 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 स्वयं के काम पर ईमान रखना देशसेवा है, 

कि अपने धर्म का सम्मान रखना देशसेवा है, 

सदा सद्भाव से सहयोग करना देशसेवा है, 

पड़ोसी से मधुर संबंध रखना देशसेवा है, 

प्रकृति से प्रेम करना भी अनोखी देशसेवा है, 

मितव्ययिता सरलता और शुचिता देशसेवा है, 

सहज अक्रोध धीरज और मुदिता देश सेवा है

सुसंगति और सेवा भावना भी देशसेवा है।

जहाँ पर देशसेवा के लिए शर्तें हुआ करतीं, 

वहाँ पर कर्म के ऊपर सदा पर्तें पड़ा करतीं।


प्रस्तुत है आत्मनिष्ठ *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  510 वां सार -संक्षेप

* आत्मज्ञान का लगातार अन्वेषण करने वाला

स्थान :कानपुर 


प्रातःकाल सदाचार संप्रेषण का मूल हेतु है कि हम लोग सद् व्यवहार सत्कर्म सदाचरण सात्विक जीवन अध्यात्म लेकिन शौर्यमय  से संयुत हों


अध्यात्म को शौर्य प्रमण्डित न करने का परिणाम यह हुआ कि एक रूप एक रस एक भाव एक भक्ति एक शक्ति और एक चैतन्य वाला हमारा भारत देश खंड खंड में बंट गया


शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म का एक अद्वितीय उदाहरण अपने जीवन की चिन्ता न करने वाले लेकिन अपनी संस्कृति की चिन्ता करने वाले 

पिता वारिया ते लाल चार वारे सरबंसदानी गुरु गोविन्द सिंह हैं जिनका जन्म पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 तदनुसार 22 दिसंबर 1666 को हुआ था



इतिहास का स्मरण हमारे चैतन्य को जाग्रत करता है दुर्भाग्य अभी भी साथ है कि अपने आत्मबोध को ही हानि पहुंचाने वाली अंग्रेजी और अंग्रेजियत में डूबा विद्यालय अभी भी ढूंढा  जाता है


हमें अपनी भूमिका के अनुसार ही काम करना चाहिये

मनुष्य कर्मयोनि है देवता भोगयोनि है इसलिये जब हम कर्म करते हैं तो भोग वाले देवताओं से ऊपर हो जाते हैं


 कुछ कर्मानुरागी देवता भी होते हैं जैसे हनुमान जी 


अपना भारतीय जीवन दर्शन , रामकथा कर्तव्य कर्म और कर्तव्य बोध पर आधारित है

राम जी का काम अटक न जाये तो 

आइये चलते हैं  रामात्मक चिन्तन करते हुए अध्यात्म इतिहास अलंकार साहित्य छंद से सुसज्जित आनन्दप्रद पथप्रदर्शक रामकथा के लंका कांड में ताकि हमारे ऊपर राम की कृपा हो और हम भ्रमित न हों 



जासु प्रबल माया बस सिव बिरंचि बड़ छोट।

ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट॥51॥


शिव और ब्रह्मा तक जिन राम जी की अत्यंत बलवान माया के वश में हैं, राक्षस उनको अपनी माया दिखला रहे हैं



युद्ध चल रहा है



घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमति किंसुक के तरु जैसे॥

लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा॥1॥


नाना बिधि प्रहार कर सेषा। राच्छस भयउ प्रान अवसेषा॥

रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना॥3॥

मेघनाद ने  अनुमान लगा लिया कि अब तो प्राण संकट में हैं


तब मेघनाथ ने वीरघातिनी शक्ति चला दी


दुराचारी ने शक्ति का दुरुपयोग कर दिया


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग प्रश्न पूछें

https://chat.whatsapp.com/DaRFu2qmGcT8jy2WF4QQyo 


इसके अतिरिक्त भैया संदीप शुक्ल का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें