22.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 22 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥

नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥3॥


प्रस्तुत है आत्ममानिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  *511 वां* सार -संक्षेप

*आदरणीय

स्थान :कानपुर 

प्रातःकाल विचारों का एक विशेष स्वरूप आचार्य जी के मन में आ जाता है और भाव उद्भूत होने लगते हैं


प्रतिदिन इन्हीं भावों विचारों से लाभान्वित होने के लिये शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के लिये संकल्पित हम लोग इन सदाचार संप्रेषणों की प्रतीक्षा करते हैं

किसी भी परिस्थिति में नित्य आचार्य जी की अभिव्यक्ति वास्तव में आश्चर्य का विषय है


*यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई॥*


इन्द्रियां सदैव विकार ही नहीं हैं विचार भी हैं जाग्रत इन्द्रियां  हमारी सहायता करती हैं

जड़ चेतन गुण दोष मय शरीर में जड़त्व शमित रहे चैतन्य जाग्रत रहे भाव भक्ति की ओर उन्मुख रहे भक्ति हमें सहारा देती है भक्ति विश्वास है अविश्वासी सदैव कष्ट में रहता है

अपनी समस्याओं का समाधान अपने ही पास है


अपनेपन का अद्भुत आत्मविस्तार हमें दिखाता है कि दूसरे ने हमारी मदद की


बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेजपुंज लछिमन उर लागी॥

मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें॥4॥

असीम रामकथा के लंका कांड के इस दृश्य में पहुंचाते हुए आचार्य जी बता रहे हैं

कि यद्यपि मेघनाथ अत्यंत शक्तिशाली है लेकिन भीतर से वह भयभीत है


लेकिन  विश्वास के प्रतिरूप हनुमान जी को विश्वास है कि लक्ष्मण जी का शरीर प्राणयुक्त है


जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना॥

धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता॥4॥

सुषेण वैद्य आ चुके हैं

कालनेमि ने भी रावण को अन्य लोगों की तरह समझाया

देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा॥2॥


लेकिन रावण को क्रोध आ गया


सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।

राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥


कालनेमि ने माया रच डाली

उसके बाद जब हनुमान जी पर्वत पर पहुंच गये


देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥

गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ। अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥



अतुलित बलशाली हनुमान जी को देखकर अयोध्या की सेवा और सुरक्षा करने वाले भरत जी ने गलत समझ लिया


परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक॥

सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥1॥

कालनेमि द्वारा राम राम बोलने और हनुमान जी द्वारा राम राम बोलने में अन्तर है


उसी की पहचान सुस्पष्ट होती है जिसके भाव शुद्ध रहते हैं

हनुमान जी भरत जी को अब भक्त दिख रहे हैं