प्रस्तुत है आत्मविद् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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*513 वां* सार -संक्षेप
*बुद्धिमान पुरुष
स्थान :कानपुर
एक व्यवस्थित व्यवस्था के अनुसार यदि हमारा शरीर मन बुद्धि चलते हैं तो हम विचार चिन्तन आदि के लिये समय निकाल लेते हैं
मन बुद्धि चित्त अहं सूक्ष्म तत्त्व हैं जो स्थूल शरीर को संचालित करते हैं
हम भारतीय ऐसा सोचते हैं कि मन ठीक तो बुद्धि ठीक रहेगी
बुद्धि ठीक तो विचार ठीक, विचार ठीक तो व्यवहार ठीक रहेगा और व्यवहार ठीक रहेगा तो संसार अर्थात् शरीर ठीक रहेगा
इससे उलट भोगवादी देश सोचते हैं कि शरीर ठीक रहेगा तो सब ठीक रहेगा
हमें सम अवस्था में रहने का प्रयास करना चाहिये
न बहुत व्याकुल न बहुत निश्चिन्त
परिस्थिति को भांपकर बौद्धिक व्यवहार करना चाहिए
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।।17.13।।
शास्त्रविधि से हीन, अन्न-दान से दूर , बिना मन्त्रों, दक्षिणा और श्रद्धा के किया गया यज्ञ तामस यज्ञ है
तामस यज्ञ शरीर के भोग के लिये है जितना शरीर को महत्त्व मिलेगा उतना वह बोझिल होता जायेगा
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।
देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी का पूजन करना, शुद्धि रखना, आर्जवम् अर्थात् सरलता, ब्रह्मचर्य का पालन करना और अहिंसा शरीर सम्बन्धी तप है।
इसी तरह आचार्य जी ने वाणी का तप और मन का तप बताया
इस तप को जो व्यवहार में ले आते हैं वे सम्मानित होते हैं
इसी तरह के बहुत से सम्मान के पात्र हैं रामचरित मानस में जिसके लंका कांड में आइये प्रवेश करते हैं
सोरठा है
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥
करुणा रस का प्रसंग अब वीर रस के प्रसंग में परिवर्तित हो गया
संरक्षक सहायक अभिभावक के रूप में विद्यमान हनुमान जी आ चुके हैं
हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥
*यही रामत्व है कि हमारी तरह परमात्मा के ही अंश सेवक के प्रति भी हमारी कृतज्ञता हो*
सारे समूह में हर्ष की लहर दौड़ गई
वैद्य वैद्य है शिक्षक शिक्षक है उसके सामने शत्रु मित्र का सवाल नहीं होता रावण ने सुषेण को यह जानने के बाद भी निकाला नहीं
यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥
लक्ष्मण जी फिर भगवान् राम के साथ खड़े हो गये हैं यह सुनकर रावण विषादग्रस्त हो गया
कुम्भकरण जग गया है
सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥62॥
लेकिन उसके मुख से भी सत्य ही निकला
मूर्ख!
(रावण से)
जगज्जनी को हर लेने के बाद सुख चाह रहे हो
रावण का विनाश निकट है इसलिये उसकी बुद्धि विकृत ही रही
सुनु भयउ कालबस रावन। सो कि मान अब परम सिखावन॥
धन्य धन्य तैं धन्य विभीषन। भयहु तात निसिचर कुल भूषन॥4॥
रावण चापलूसों से घिरा है
अकबर भी रावण की तरह का था अकबर को भी बहुत लोगों का समर्थन था तब तुलसीदास चेतावनी दे रहे थे
रामत्व जाग्रत हुआ सल्तनतें नष्ट हुईं
भारत का दीप कभी बुझेगा नहीं
भारत की प्रज्ञा को परमात्मा मार्ग देता है
यही यथार्थ है
हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है अपने रामत्व से हम रावणों को नष्ट करते चलेंगे