27.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।


कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।9.7।।



प्रस्तुत है आधर्मिक -रिपु *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  *516 वां* सार -संक्षेप

*बेईमानों का शत्रु

देवताओं से भी अधिक शक्ति प्राप्त करने में सक्षम और परमात्मा के परिष्कृत अंश मनुष्य से ही संसार आचार विचार विकार संयम नियम ध्यान धारणा व्यवहार संयुत है


मनुष्य कभी अपने को बहुत विचलित कर लेता है और कभी जब उसे सुस्पष्ट रहता है कि


वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव


दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।


अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा


योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।।

तो 

विचलनों से बाहर निकलने का मार्ग भी स्वयं ही खोज लेता है

वह भक्ति के आधार पर परमात्माश्रित रहता है यद्यपि किसी को अपना स्थान त्यागना अच्छा नहीं लगता फिर भी संसार रूपी रंगमंच पर  बिना लिप्त हुए सांसारिक कार्यों को अभिनेता की भांति करते हुए वह मुक्त भाव से परमात्मा से पुरस्कृत होता है

लेकिन 

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।


परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।


मूर्ख  मेरे  महान् ईश्वर रूप परम भाव को न जानते हुए मुझे  साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं।


कुछ पाने का भाव लिये भक्ति करने वाले शक्ति के मद में चूर राक्षसी स्वभाव वाले रावण मेघनाद भगवान् राम को साधारण मनुष्य ही मान रहे हैं


लरहिं सुभट निज निज जय हेतू। बरनि न जाइ समर खगकेतू॥6॥


दृश्य है

सांसारिक ज्ञानियों के लिये अबूझ रामचरित मानस के 

 लंका कांड में युद्ध का


कुम्भकर्ण मारा जा चुका है

मेघनाद का आगमन हो गया है

मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास।

गर्जेउ अट्टहास करि भइ कपि कटकहि त्रास॥72॥


देवताओं से वरदान प्राप्त मेघनाद का दुस्साहस देखिये

पुनि रघुपति सैं जूझै लागा। सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा॥5॥


ब्याल पास बस भए खरारी। स्वबस अनंत एक अबिकारी॥


लेकिन

चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी॥

*अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी*॥1॥


यह भक्ति है उसे तर्कों से दूर रखना चाहिये


भक्ति के भाव को समझने की चेष्टा करें


मिट्टी में भी भाव देखे जाते हैं

उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं


फिर जामवंत ने लंका के द्वार पर मेघनाद को फेंक दिया


इसके अतिरिक्त भैया दीपक शर्मा जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें