भारत भारती भरतभू की हर कथा अनोखी अनुपम है,
इसकी भूरज का कण अणु अणु अद्भुत मनोज्ञ है अनुपम है,
सौभाग्य हमारा इस धरती पर जन्म हुआ पालन-पोषण,
हम आत्मबोध- संयुक्त कर्म की कथा क्रान्ति के संघोषण।
प्रस्तुत है प्रशमन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*517 वां* सार -संक्षेप
*धीरज बंधाने वाला
आचार्य जी कुछ समय से श्रीमद्भगवद्गीता,जिसमें
युद्ध की तैयारी के साथ आत्मबोधोत्सव का विलक्षण दर्शन है,
और श्री रामचरित मानस का आधार लेकर कुछ तथ्य, तत्त्व, विषय, राग प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि हम आत्मबोध से संयुक्त, कर्मानुरागी,भारतभू के प्रति पूर्णरूपेण सतत कृतज्ञता रखने वाले वाले बन सकें
हमें ध्यान रखना चाहिये कि इस देश के उत्थान और सम्मान के लिये इसकी सेवा के लिये अपने से जो भी बन पड़े उसे हम करते चलें
दम्भ द्वेष हीनभावना सांसारिक अहंकार से रहित होकर
समभाव से रहना और सहयोगियों को रहने सहने के लिये प्रेरित करना -यह युगभारती का व्यवहार होना चाहिये
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है इसमें किसी प्रकार का भ्रम न हो
स्वामित्व का अभिमान यदि दुष्टों को हो जाये तो अत्यधिक घातक होता है इसलिये शिष्ट बनें
लंका कांड चल रहा है
रावण का सबसे अधिक विश्वासपात्र सबसे बड़ा सहारा सर्वाधिक तामसी यज्ञों को करने वाला और उसका प्रतिफल पाने वाला उसका पुत्र इन्द्रजीत मेघनाद
प्रभु राम सहित सबको नागपाश में बांध देता है
हमारे यहां वृद्धावस्था बोझ नहीं होती अद्भुत है यह धरती
सलाह मशविरा परामर्श देने वाला सबसे अधिक वृद्ध आत्मशक्ति युक्त जामवन्त
मारिसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती॥
पुनि रिसान गहि चरन फिरायो। महि पछारि निज बल देखरायो॥4॥
खगपति सब धरि खाए माया नाग बरुथ।
माया बिगत भए सब हरषे बानर जूथ॥74 क॥
पक्षीराज गरुड़जी सब माया-सर्पों के दलों को पकड़कर खा गए। तब सारे वानरों के झुंड माया रहित होकर प्रसन्न हुए॥
मेघनाद कै मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी॥
तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा॥
मेघनाद गुफा में चला गया ताकि स्वार्थ वाला तामसिक यज्ञ कर सके
सात्विक यज्ञ करने वालों का साथ देने वाले
उसी कुलगोत्र के विभीषण चिन्तित हो गये
तब प्रभु राम कहते हैं
लछिमन संग जाहु सब भाई। करहु बिधंस जग्य कर जाई॥
लक्ष्मण का सात्विक आवेश देखिये
जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर ई॥
और
रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत॥ 75॥
भीषण युद्ध होने लगा
मेघनाद मारा गया
मरती बार कपटु सब त्यागा॥
मरते समय उसने सारे कपट त्याग दिये
इसके अतिरिक्त
आचार्य जी ने
गीता के सोलहवें अध्याय का उल्लेख क्यों किया जानने के लिये सुनें