30.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -तोयालय *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  *519 वां* सार -संक्षेप

*ज्ञान का समुद्र



संस्कृत भाषा और  देवनागरी लिपि बहुत गहराई वाले चिन्तन में प्रवेश करा देती है यदि हम गम्भीरता से जानने का प्रयास करें

यह बात हम लोग तर्कपूर्ण ढंग से कह सकते हैं

सत्य के पास तर्क तो होते ही हैं उसके पास प्रभाव भी होता है

इस प्रभाव की अनुभूति भारत अनन्त काल से करता आ रहा है


इतिहास की विकृतियों विदेशी आक्रमणों सामजिक विकारों को झेलते हुए भी भारतीय संस्कृति अक्षयवट की तरह है


जब हम इन्द्रियों के वश में हो जाते हैं तो दुविधाग्रस्त हो जाते हैं जैसे अर्जुन


एक परिवार में कितना विरोध विग्रह है कि

उसी परिवार का दंभी लोभी क्रोधी दुर्योधन कहता है


जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।


केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)


अर्जुन  भी यही कहता है


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।


लेकिन वो जानना चाहता है कि कैसे उससे बचा जाए


 पापपूर्ण आचरण न करना पड़े

भगवान् कृष्ण कहते हैं



ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।


निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।



हे अर्जुन! जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है, न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझा जाये  क्योंकि राग-द्वेष आदि द्वंद्वों से रहित व्यक्ति सुखपूर्वक संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है


अपने जीवन को सहारा देने वाली पूजा तभी सार्थक है जब वह कर्म को उत्साह दे


पाप पुण्य ज्ञान शक्ति भक्ति विकार विचार आदि का विवेचन हमारे ग्रंथों में है लेकिन उनके रहस्यों को जानने का हमारे अन्दर उत्साह हो आत्मशोध की भावना हो इसी का प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन करते हैं


रामचरित मानस भी ऐसा ही ग्रंथ है उसी के लंका कांड में



मेघनाद भी मारा गया लेकिन 

रावण अभी भी संसार का भोग भोगने में आसक्त है




सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई॥

निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा॥


यह व्यर्थ का दम्भ है

Fuse Bulb की क्या कीमत 

?


लेकिन


ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम।

भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम॥ 78॥



रामदल का उत्साह बढ़ा हुआ है


इसके बाद आचार्य जी ने राम गीता अर्थात् धर्मरथ का संकेत दिया जिसका विस्तार कल करेंगे


नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥